शनिवार, 16 जुलाई 2011

गरीबी कहाँ बुरी, कहाँ भली

आर्थिक आधार पर मनुष्य को दो वर्गों में बाँटा गया है-अमीर और गरीब। जो मनुष्य साधन सम्पन्न हैं, उन्हें अमीर और जो साधन हीन हैं, उन्हें गरीब कहते हैं। इस संसार में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है तथा उसे श्रेष्ठ राजकुमार कहा गया है, फिर भी वह गरीब क्यों है ? इस संसार में सभी सम्पत्ति ईश्वर की बनायी हुई है। मनुष्य उन सभी सम्पत्तियों पर एकाधिकार करना चाहता है। प्रकृति में सभी के भरण-पोषण की पूरी व्यवस्था है; परन्तु जब कोई व्यक्ति कई व्यक्तियों के साधन स्वयं अकेले एकत्र कर लेता है, तो वह अमीर तथा जिनके साधन छिने हैं, वे गरीब कहलाते हैं।

खनिज पदार्थों के रूपान्तरण की क्षमता मनुष्य में है। इसलिए वह उसका संग्रह करके धनवान बन जाता है। अन्य प्राणियों में यह क्षमता नहीं होती है। इसलिए अन्य प्राणियों में कोई अमीर-गरीब नहीं होता है। कुछ लोग साधनहीन या गरीब इसलिए होते हैं कि वे धन का महत्त्व नहीं समझते और पुरुषार्थ नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप विद्याध्ययन नहीं कर पाते। इस प्रकार वे विद्याहीन व साधनहीन रह जाते हैं, जिसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। बड़ी संख्या में मजदूरी, मिस्त्रीगीरी आदि करने वाले सामान्य नौकरी करने वालों से अधिक उपार्जन करते हैं; परन्तु अपने दुर्व्यसनों के कारण वे गरीब बने रहते हैं। नशा, फैशन आदि में अपव्यय के कारण वे गरीब दिखाई पड़ते हैं।

बहुधा देखा जाता है कि अच्छे कलाकार श्रम भी खूब करते हैं; परन्तु बीच में एक शोषक वर्ग होता है, जो उसके लाभ पर पलता है और उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। खरीददार द्वारा उचित मूल्य दिये जाने पर भी उत्पादक श्रमिक को कुछ अंश ही मिल पाता है, जिससे वह गरीब बना रहता है।

बुद्धिमानों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो अपनी साधन सम्पदा को अभाव ग्रस्तों में वितरित करके उनका उत्थान करता है। दीन-दुखियों की सहायता करता है। स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों को सुख पहुँचाता है। इस तरह वे गरीब-सा दिखाई पड़ते हैं, परन्तु वे सम्मान और यश के भागीदार होते हैं तथा समाज उनकी पूजा करता है। यह गरीबी त्याग और आदर्श के नाम से प्रशंसनीय होती है। उत्कृष्टता के लिए आदर्शों के प्रति यदि कर्तव्यनिष्ठ रहकर हम गरीब दिखाई पड़ते हैं, तो यह गरीबी भली कही जाती है और यदि पुरुषार्थ की कमी और आलस्य के कारण हम गरीब दिखाई पड़ते हैं, तो यह गरीबी बुरी और निन्दनीय समझी जाती है।

-डॉ. प्रणव पण्ड्या

यह संकलन हमें श्री अंकित अग्रवाल नैनीताल से प्राप्त हुआ हैं। धन्यवाद। यदि आपके पास भी जनमानस का परिष्कार करने के लिए संकलन हो तो आप भी  हमें मेल द्वारा प्रेषित करें। उसे अपने इस ब्लाग में प्रकाशित किया जायेगा। आपका यह प्रयास ‘‘युग निर्माण योजना’’ के लिए महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
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