बुधवार, 24 जून 2009

ज्ञान

1) ज्ञानी वह हैं जो वर्तमान को ठीक से पढ सके और परिस्थिति के अनुसार चल सके।
--------------------
2) सन्मार्ग पर देर तक टिके रहना ज्ञान से ही सम्भव है।
--------------------
3) उपलब्धियॉं इस संसार में भरी पडी हैं, पर उन्हे प्राप्त करने के लिये ज्ञान, चरित्र एवं साहस चाहिये।
--------------------
4) दूसरो के लिये करना कर्मयोग हैं, अपने को जानना ज्ञानयोग हैं और परमात्मा को मानना भक्तियोग है।
--------------------
5) वेद, ज्ञान, उत्तम कुल पाया, फिर भी रावण असुर कहाया।
--------------------
6) तप का सुफल ज्ञान है।
--------------------
7) जो अपने को सबसे बडा ज्ञानी समझता हैं वह सामान्यत: सबसे बडा मूर्ख होता है।
--------------------
8) आत्म ज्ञान का सूर्य प्राय: वासना और तृष्णा की चोटियों के पीछे छिपा रहता हैं, पर जब कभी, जहॉं कहीं वह उदय होगा, वहीं उसकी सुनहरी रिश्मयां एक दिव्य हलचल उत्पन्न करती हुई अवश्य दिखाई देगी।
--------------------
9) अनुभवजन्य ज्ञान ही सत्य है।
--------------------
10) अल्प ज्ञान वाला महान् अहंकारी होता है।
--------------------
11) मन के हाथी को विवेक के अंकुश में रखो।
--------------------
12) मनुष्य का स्वविवेक ही सबसे बडा मार्गदर्शक है।
--------------------
13) मनुष्य शरीर की महिमा वास्तव में विवेकशक्ति के सदुपयोग की महिमा है।
--------------------
14) बिना विपित्त की ठोकर लगे, विवेक की ऑख नहीं खुलती।
--------------------
15) विवेक की जाग्रति न होने का कारण उसका आदर नहीं करना, महत्व नहीं देना है।
--------------------
16) विवेक का आदर तथा बल का सदुपयोग करना चाहिये।
--------------------
17) विवेक को कुंठित करने वाले दोषो से बचकर चलना चाहिये।
--------------------
18) विवेक शक्ति मनुष्य का गुंरु है।
--------------------
19) विवेक शक्ति का नाम मानव शरीर है।
--------------------
20) भूल सुधार मनुष्य का सबसे बडा विवेक है।
--------------------
21) परम्पराओ की तुलना में विवेक को महत्व दीजिये।
--------------------
22) सतत् आत्मनिरीक्षण अर्थात प्राप्त विवेक के प्रकाश में अपने दोषों को देखना चाहिये।
--------------------
23) सलाह सबकी सुनो पर करो वही जिसके लिये तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
--------------------
24) दुष्प्रवृतियों , कुरीतिया, मूढ-मान्यतायें विवेक की उपेक्षा करने से ही पनपती है। विवेक रुपी नेत्र के जाग्रत होते ही इनके मिटने में देर नहीं लगती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin