बुधवार, 24 जून 2009

गुण

1) एक मूर्ख ताकत को सद्गुण, दृढता को सच्चाई, बदले को इन्साफ और इन्सानियत को कमजोरी समझता है।
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2) धन उन्ही के पास ठहरता हैं, जो सद्गुणी है।
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3) खोजे परगुण अपने दोष, सीमित साधन में सन्तोष।
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4) कष्ट और विपित्त मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण है।
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5) महानता एवं मानवता का गुण न तो किसी के लियें सुरक्षित हैं और न किसी के लिये प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओ से उसे प्राप्त कर सकता है।
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6) मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता हैं न कि दूसरों की कृपा से।
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7) सि्नग्ध पुष्प के समान विकसित होने वाले अनेक सद्गुण भय की एक ठेस पाकर क्षत-विक्षत हो जाते है।
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8) विपत्ति में धीरज, संपत्ति में क्षमा, सभा में वाक्य चातुरी, युद्ध में पराक्रम, यश में प्रेम और शास्त्रों में लगन-ये सद्गुण महात्माओं में स्वाभाविक होते है।
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9) जिज्ञासा तेज बुद्धि का एक स्थायी और निश्चित गुण है।
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10) जिस गुण को आप अपने में लाना चाहते हैं, उस गुण वाले का संग करो। यह बहुत बढ़िया उपाय है।
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11) जिसने बेच दिया ईमान, करों नहीं उसका गुणगान।
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12) जिन आन्तरिक सद्गुणो के आधार पर कोई जाति महान बन सकती हैं ,उन्हे विकसित करने वाला आध्यात्मवाद आज उपेक्षा के गर्त में पडा हैं। उसे अग्रगामी बनाकर ही मानवता का वास्तविक रुप देखा जा सकता है।
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13) जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो।
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14) पक्षपात से गुण दोष में और दोष गुण में बदल जाते है।
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15) पर दोष दर्शन एवं अपने गुण दर्शन का त्याग करना चाहिये।
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16) प्रसन्नता सब सद्गुणों की जननी है।
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17) संवेदनशीलता जहॉं कहीं भी हैं, वहॉं अपने आप सद्गुणों की कतार खडी हो जायेगी। इसके विपरीत निष्ठुरता जहॉं हैं, वहॉं दुर्गुणो की लाइन लगते देर न लगेगी ।
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18) सारे पुण्यो और सद्गुणो की जड सत्य है।
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19) सद्गुण साधक को साधने के पथ पर लगाता है।
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20) सद्गुणो का संग्रह सच्ची कमाई है।
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21) स्व-मूल्यांकन की एक ही कसौटी सद्गुणों का विकास।
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22) स्वयं के सत्वगुणों की अति न्यूनता के कारण हमें दूसरों के गुण भी नहीं दिखाई देते है।
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23) स्वार्थ नहीं परमार्थ महान्, वंश नहीं गुण कर्म प्रधान।
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24) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।

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