-----------
2) ईश्वर की सर्वव्यापी दृष्टि से कोई नहीं बच सकता है।
-----------
3) ईश्वर को मनुष्य के दुर्गुणों में सबसे अप्रिय अहंकार है।
-----------
4) ईश्वर के घर के लगती देर, किन्तु नहीं होता अन्धेर।
-----------
5) ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भक्त को भी उसी जैसा बना देता है।
-----------
6) ईश्वर विश्वास का फलितार्थ हैं-आत्मविश्वास और सदाशयता के सत्परिणामों पर भरोसा।
-----------
7) ईश्वर भक्त अभक्त का बहीखाता नहीं रखता उसके लिये हर ईमानदार अपना और हर बेईमान शैतान की बिरादरी का है।
-----------
8) ईश्वर से पाना और प्राणियों में बॉटना, इसी में सच्ची सम्पन्नता, समर्थता और जीवन की सच्ची सार्थकता है।
-----------
9) ईश्वर तो हैं केवल एक, लेकिन उसके नाम अनेक।
-----------
10) ईश्वर ने इन्सान बनाया, ऊंच नीच किसने उपजाया।
-----------
11) ईश्वर ने जिन्हे बहुत दिया हैं, उन्हे भी देने की कला सीखनी चाहिये।
-----------
12) ईश्वर कर्म नहीं करवाता, प्रत्युत फल भुगवाता हैं। मनुष्य कर्म स्वतन्त्रता से करता है, फल परतन्त्रता से भोगता है।
-----------
13) जिस मनुष्य की जितनी कम आवश्यकता होती हैं, वह ईश्वर के उतने ही नजदीक होता है।
-----------
14) जिस वक्त जो मिल जाये उसे ईश्वर की प्रसन्नता के निमित्त किया जाये तो आप आसानी से उन्नत हो जाओगे।
-----------
15) हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को जीवन में उतारे।
-----------
16) हमारी ईश्वर भक्ति, पूजा उपासना से आरम्भ होती हैं और प्राणिमात्र को अपनी ही आत्मा के समान अनुभव करने और अपनी ही शरीर के अंग अवयवो की तरह अपनेपन की भावना रखते हुए अनन्य श्रद्धा चरितार्थ करने तक व्यापक होती चली जाती है।
-----------
17) भयभीत न हो, निराश न हो, क्योकि मै तुम्हारा भगवान, तुम्हारा ईश्वर सदा तुम्हारे साथ हू। जहॉं-जहॉं तुम जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।
-----------
18) श्रम ईश्वर की सबसे बडी उपासना है।
-----------
19) सद्भावनाओ व सत् परवर्तियों से जिनका जीवन ओतप्रोत हैं, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।
-----------
20) सद्ज्ञान और सत्कर्म यह दो ईश्वर प्रदत्त पंख हैं जिनके सहारे स्वर्ग तक उड सकते है।
-----------
21) सदा सर्वदा ईश्वर पर निर्भर रहना चाहिये। इससे धीरता, वीरता, गभ्भीरता, निर्भयता और आत्मबल की वृद्धि होती है।
-----------
22) सर्वप्रथम स्वयं पर विश्वास रखों फिर ईश्वर में।
-----------
23) उपासना सच्ची तभी हैं, जब जीवन में ईश्वर घुल जाये।
-----------
24) उस ईश्वर को पूजो, जिसे तुम जेब में रख सको या जिसकी जेब में रह सको। इसे तलाशते मन फिरो, जो सातवे आसमान पर रहता हैं और एक ही भाषा की वर्णमाला पढा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें