रविवार, 29 जुलाई 2012

दुख क्या हैं ?

इच्छाएं दरिद्र बनाती हैं। उनसे ही याचना और दासता पैदा होती हैं। फिर, उनका कोई अंत भी नहीं हैं। जितना उन्हे छोड़ो, उतना ही व्यक्ति स्वतंत्र और समृद्ध होता हैं। जो कुछ भी नहीं चाहता हैं, उसके स्वतंत्रता अनंत हो जाती है। 


एक सन्यासी के पास कुछ रूपये थे। उसने कहा कि वह उन्हें किसी गरीब आदमी को देना चाहता हैं। बहुत से गरीब लोगों ने उसे घेर लिया और उससे रूपयों की याचना की। उसने कहा, मैं अभी देता हूँ - मैं अभी उसे रूपये दिए देता हूं जो इस जगत मे सबसे ज्यादा गरीब और भूखा हैं। यह कहकर सन्यासी भीतर गया। तभी लोगों ने देखा कि राजा की सवारी आ रही है। वे उसे देखने में लग गए। इसी बीच सन्यासी बाहर आया और उसने अपने रूपये हाथी पर बैठे राजा के पास फेंक दिए। राजा ने चकित हो, इसका कारण पूछा, फिर लोगो ने भी कहा कि आप तो कहते थे कि मैं रूपये सर्वाधिक दरिद्र व्यक्ति को दूंगा। सन्यासी ने हँसते हुए कहा-मैंने उन्हे दरिद्रतम व्यक्ति को ही दिया हैं। वह जो धन की भूख में सबसे आगे हैं, क्या सर्वाधिक गरीब नही हैं ?

दुख क्या हैं ? कुछ पाने की और कुछ होने की आकांक्षा ही दुःख हैं। दुख कोई नहीं चाहता, लेकिन आकांक्षाएं हो तो दुख बना ही रहेगा। किंतु, जों आकांक्षाओं के स्वरूप को समझ लेता हैं, वह दुख से नहीं, आकांक्षाओ से ही मुक्ति खोजता हैं। जब हम इच्छाओं और आकांक्षाओं के घेरे से बाहर आ जाते हैं तो दुख अपने आप दूर हो जाते हैं। और दुख के आगमन का द्वार अपने आप ही बंद हो जाता है। 

-ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin