नादिरशाह फकीर के पास गया। वहाँ उसने देखा कि परिंदे भी हैं, पानी भी हैं, अन्न भी हैं, फल भी है। फकीर ने उसके मन को पढ़ा और कहा कि परिंदों के कारण यहाँ अन्न-जल है। तुम इनसान जिंदा हो तो मात्र परिंदो के कारण। तुम्हारी क्रूरता ने, जल्लादी व्यवहार ने तो परिंदो को भी खतम कर दिया और वृक्ष भी समाप्त हो गए।
आज पेड़ कट रहे है। परिंदे हमारे लिए पुण्य एकत्र करते हैं, वृक्षों की छाया में मात्र निवास चाहते है। पर हम उनका बसेरा उजाड़ रहे है। पथिकों को छाया, परिंदो को बसेरा, हमें फल-भोजन जंगलों से ही मिलते है। क्या हम समझेंगे कि वृक्षारोपण करने से ही हमारी भविष्य की पीढ़ी सुरक्षित रहेगी। इनसान व प्रकृति के बीच बड़ा सूक्ष्म आध्यात्मिक संबंध है। वह हमें जिंदा रखना है तो जंगल बचाने का-वृक्षों को लगाने का अभियान-वृक्ष गंगा अभियान लोकप्रिय बनाना होगा।
अखण्ड ज्योति जुलाई 2011
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