जीवन पद्धति को आध्यात्मिक मोड दिए बिना आत्मा के विकास की सम्भावनाऐं उज्ज्वल नहीं हो सकती। जीवन में आध्यात्मिक गुणों को-उदारता, त्याग, सदिच्छा, सहानुभूति, न्यायपरता, दयाशीलता आदि को जागृत करने का काम शिक्षा द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। शिक्षा मनुष्य को ज्ञानवान ही नहीं शीलवान बनाकर निरामय मानवता के अलंकरणो द्वारा उसके चरित्र का श्रंगार कर देती है। शिक्षा सम्पन्न व्यक्ति ही वह विवेक-शिल्प सिद्ध कर सकता हैं, जिसके द्वारा गुण, कर्म व स्वभाव को वांछित रुप में गढ सकना सम्भव हो सकता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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