सोमवार, 13 जून 2011

अखण्ड ज्योति मार्च 1984

1. नीति सत्ता-एक अनुशासन, एक अनुबन्ध

2. विधि का विधान-कर्मफल का प्रतिफल

3. ज्ञान का आदि स्त्रोत-जिज्ञासा

4. दृश्य से परे विचारों की विलक्षण दुनिया

5. पूर्व जन्म की स्मृति अवांछनीय

6. मानव से जुड़ी परोक्ष जगत की हलचलें

7. सिद्धि का दर्शन और मर्म

8. पारस्परिक सहकार से गतिशील जीवन चक्र

9. आत्मबोध की चमत्कारी परिणतियाँ

10. आत्मा शरीर से भिन्न हैं और स्वतन्त्र भी

11. स्वप्नों से होती हैं आगत की जानकारी

12. चेतना जगत की सुलझती गुत्थियाँ

13. अतीन्द्रिय क्षमतायें-अभ्यास की देन

14. अन्य प्राणी सर्वथा पिछड़े हुए ही नहीं हैं

15. वरिष्ठता, विस्तार में नहीं स्तर में हैं

16. उसने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी

17. वरिष्ठ आत्माओं के इस धरती को विशिष्ट अनुदान

18. प्रोढावस्था-प्रगति एवं परिपक्वता की अवधि

19. स्वार्थ सिद्धि एवं औचित्य की मर्यादा

20. उपयोगी ज्ञान वृद्धि-विवेक बुद्धि के सहारे

21. जिन्दगी चालीसवें साल से शुरू होती हैं

22. प्रगति और कर्मठता एक ही तथ्य के दो पक्ष

23. मुस्कान एक औषधि एवं समग्र उपचार

24. गर्मी और रोशनी से दूर न भागें

25. विधेयात्मक चिन्तन की फलदायी परिणतियाँ

26. हम अनिष्ट काल में से गुजर रहे हैं

27. पृथ्वी के इर्द-गिर्द चल रही अवांछनीय हलचलें

28. प्रकृति की छेड़छाड़-अवांछनीय-अहितकर

29. यज्ञ में मन्त्र शक्ति के प्रखर प्रयोक्ता

30. अन्धकूप के पाँच प्रेत

31. अपनो से अपनी बात

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