1) यदि हम अपना जीवन श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपने विचारों अर्थात् संकल्पो को श्रेष्ठ बनाना आवश्यक हैं। यही बीज हैं जिससे कर्म रुपी वृक्ष निकलता है।
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2) यदि हमारे जीवन में सच्चाई हैं तो उसका असर अपने-आप लोगो पर पड़ेगा।
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3) यदि परिवर्तन से डरोगे तो तरक्की कैसे करोगे।
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4) यदि पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास की प्रगाढता हैं तो परिवार में सर्वत्र प्रेम, स्नेह, श्रद्धा व सेवा की भावना बनी रहेगी।
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5) यदि प्रतिकूलता न हो तो लोग अपनी जागरुकता ही खो बैठे। सुधार के लिये भी और प्रगति के लिये भी जागरुकता आवश्यक है। वह बिना प्रतिकूलता से पाला पडे और किसी प्रकार उत्पन्न नहीं हो सकती है।
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6) यदि सफलता की चाह हैं तो स्वयं को प्रत्येक क्षण काम या उद्यम में डूबा दो, सफलता मिलकर रहेगी।
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7) यदि दुःख के बाद सुख न आता तो उसे कौन सहता।
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8) यदि देखने की इच्छा हो तो यह देखो कि मै कौन हूँ ?
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9) यदि तुम्हारे में राई के दाने जितना भी आत्मविश्वास हैं तो तुम्हारे लिये कुछ भी असम्भव नही।
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10) यदि जीवन में सुखी रहना चाहते हों तो हमेशा भलाई करो।
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11) यदि अपनी आत्मा में भय, शंका, अविश्वास, द्वेष, परायापन न हों, आत्मीयता की निष्ठा अति प्रगाढ हो तो मनुष्य जैसे संवेदनशील प्राणी द्वारा अविकसित पशु-पक्षियो और जन्तुओ में भी कौटुम्बिकता विकसित की जा सकती है।
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12) यदि आस्तिकता कभी जीवन में फलित होगी तो व्यक्ति कर्तव्य पालन को सबसे पहले महत्व देगा।
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13) यदि आप भगवान के समीप जाना चाहते हों तो उसी के समान निरहंकारी बन जाओ।
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14) यदि आप स्थाई रहने वाली संपदा चाहते हैं, तो धर्मात्मा बनिए।
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15) यदि आप चाहते हैं कि कोई आपको याद रखे तो समय-समय पर फोन पर बातें कर घर का हालचाल पूछे और हो सके तो कुछ उपहार भेंजे।
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16) यदि आपको दूसरों की प्रतीक्षा करने की आदत हैं, तो आप अवश्य पीछे रह जायेंगे।
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17) यदि आपमें सीखने की इच्छा हैं, तो ही आपको अच्छे गुरु मिलेंगे।
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18) यदि लोभ को हटाना चाहते हो तो तुम्हे पहले उसकी माँ विलासिता को हटाना होगा।
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19) यह एक अनुभूत सत्य हैं कि सफलताए हमेशा ही तप व पुण्य का परिणाम होती है।
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20) यह नियम हैं कि दुःखी आदमी ही दूसरे को दुःख देता है।
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21) यह शरीर आत्मा को अपना लक्ष्य पूरा करने के लिये मिला हैं, मन और इन्द्रियों की वासना पूर्ति के लिये नही।
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22) यह संसार एक दिव्य ईश्वरीय योजना हैं और उन्ही प्रभु की इच्छा से नियन्त्रित है। इस सत्य की अवहेलना करने वाले व्यक्ति को ईश्वर के प्रति समर्पित होने की कला नहीं आती है। परिणामतः मन में चिन्ता, उद्वेग एवं अनेक तरह की उलझने उत्पन्न हो जाती है।
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23) यह दुनिया तुम्हारे कार्यो की प्रशंसा करती हैं, तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं, खतरा तब हैं, जब तुम प्रशंसा पाने के लिए किसी काम को करते हो।
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24) यह तथ्य हैं कि जिन्होने भगवान का आमन्त्रण सुना हैं, वह कभी घाटे में नहीं रहे।
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