बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

शक्ति-केंन्द्र का उद्दीपन- शब्दशक्ति द्वारा

एक विलक्षणता गायत्री महामंत्र में यह है कि इसके अक्षर, शरीर एवं मनः तंत्र के मर्म केन्द्रों पर ऐसा प्रभाव छोड़ते हैं कि कठिनाइयों का निराकरण एवं समृद्घ-सुविधाओं का सहज संवर्द्घन बन पड़े । टाइपराइटर पर एक जगह कुंजी दबाई जाती है और दूसरी जगह संबद्घ अक्षर छप जाता है । बहिर्मन पर, विभिन्न स्थानों पर पड़ने वाला दबाव एवं कंठ के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न शब्दों का उच्चारण अपना प्रभाव छोड़ता है और इन स्थानों पर पड़ा दबाव सूक्ष्म-शरीर के विभिन्न शक्ति-केंन्द्रों को उद्वेलित-उत्तेजित करता है । योगशास्त्रों में षटचक्रों, पंचकोशों, चौबीस ग्रंथियों, उपत्यिकाओं और सूक्ष्म नाड़ियों का विस्तापूर्वक वर्णन है, उनके स्थान, स्वरूप के प्रतिफल आदि का भी विवेचन मिलता हैं, साथ ही यह भी बताया गया है कि इन शक्ति-केंन्द्रों को जागृत कर लेने पर साधक उन विशेषताओं-विभूतियों से संपन्न हो जाता है । इनकी अपनी-अपनी समर्थता, विशेषता एवं प्रतिक्रिया है । गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों का इनमें एक-एक से संबंध है । उच्चारण से मुख, तालु, ओष्ठ कंठ आदि पर जो दबाव पड़ता है, उसके कारण ये केंन्द्र अपने -अपने तारतम्य के अनुरूप वीणा के तारों की तरह, झंकृत हो उठते हैं- सितार के तारों की तरह, वायलिन-गिटार की तरह, बैंजो-हारमरेनियम की तरह झंकृत हो उठते और एक ऐसी स्वरलहरी निस्सृत करते हैं, जिससे प्रभावित होकर शरीर मे विद्यमान दिव्यग्रंथियाँ जाग्रत होकर अपने भीतर उपस्थित विशिष्ट शक्तियों के जाग्रत एवं फलित होने का परिचय देने लगती हैं । संपर्क साधने के मंत्र का उच्चारण टेलेक्स का काम करता है । रेडियो या दूरदर्शन -प्रसारण की तरह शक्तिधाराएं यों सब ओर निःसृत होती हैं, पर उस केन्द्र का विशेषतः स्पर्श करती हैं, जो प्रयुक्त अक्षरों के साथ शक्ति-केन्द्रों को जोड़ता है । 
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin