महर्षि रमण एक सिद्ध पुरुष थे । मौन ही उनकी भाषा थी । उनके सान्निध्य में सत्संग के माध्यम से सबको एक जैसे ही संदेश मिलते थे, मानों वे वाणी से प्रवचन देकर उठे हों। सत्संग के स्थान पर उस प्रदेश के निवासी कितने ही प्राणी नियत स्थान और नियत समय पर, उनका संदेश सुनने आया करते थे । बंदर, तोते, साँप, कौए सभी को ऐसा अभ्यास हो गया कि आगंतुको की भीड़ से बिना डरे-झिझके अपने नियत स्थान पर आ बेठते थै । मौन सत्संग समाप्त होते ही अपने घोंसलों व स्थानों को चल दिया करते थे ।
महापुरुष का सान्निध्य होता ही ऐसा विलक्षण है।
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