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2) यह एक अनुभूत सत्य हैं कि सफलताएं हमेशा ही तप व पुण्य का परिणाम होती है।
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3) सिक्के से वस्तु, वस्तु से व्यक्ति, व्यक्ति से विवेक तथा विवेक से सत्य को अधिक महत्त्व देना चाहिये।
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4) जिसके साथ सत्य हैं वह अकेला होते हुए भी बहुमत में है।
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5) निर्मल अन्त:करण को जो प्रतीत हो, वही सत्य है।
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6) शान्ति से क्रोध को, भलाई से बुराई को, शार्य से दुष्टता को और असत्य को सत्य से जीते।
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7) सोते रहना ही कलियुग हैं, उंघते रहना ही द्वापर हैं, उठ बैठना त्रेता हैं और कार्य में लग जाना सतयुग है। इसलिये काम करो, काम करो।
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8) सच्चाई और इमानदारी से प्रेरित संघर्ष ही स्थायी प्रगति का आधार है। अकेला संघर्ष ही कॉफी नहीं, उसमें सत्य का समन्वय होगा, तो ही भीतरी शक्ति का आशीर्वाद मिलेगा।
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9) सत्य की प्राप्ति के लिये सत्यभाषण की बडी आवश्यकता है।
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10) सत्य की चेष्टा कभी व्यर्थ नहीं जाती।
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11) सत्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनन्दन यह हैं कि हम उसको आचरण में लायें।
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12) सत्य के लिए सहना ही तप है।
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13) सत्य के सूर्य को कभी असत्य के बादल नहीं ढक सकते।
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14) सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।
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15) सत्य सरल और असत्य कठिन होता है।
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16) सत्य तक वे लोग पहुंचते हैं, जो सरल हैं, निश्छल हैं और शुद्ध भाव से प्रयत्न करते है।
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17) सत्य, प्रिय, मधुर, अल्प और हितकर भाषण कीजिये।
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18) सतयुग अब आयेगा कब, बहुमत जब चाहेगा तब।
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19) सत्-मार्ग के पथिक बनो।
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20) सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढकर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।
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21) सत्कर्म, सत्चर्चा, सिच्चन्तन और सत्संग- ये चार उत्तरोत्तर श्रेष्ठ साधन है।
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22) सतसंग का मतलब हैं-सत्य से गहरा सानिध्य।
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23) सन्देह में सज्जन के अन्त:करण की प्रवर्ति ही सत्य का निर्देशन करती है।
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24) दर्शन विश्वास हैं , परन्तु अनुभव नग्न सत्य है।
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