सोमवार, 15 जून 2009

ईश्वरचंद विद्यासागर

ईश्वरचंद विद्यासागर एक दिन अपने मित्र के साथ अनिवार्य कार्य से जा रहे थे। रास्तें में हैजे से पीड़ित एक दीन-हीन व्यक्ति मुर्छित अवस्था में पड़ा मिला । विद्यासागर उनकी सफाई करके पास के अस्पताल मे पहुँचाने का उपक्रम करने लगे । साथी मित्र ने कहा- ``हम लोग आवश्यक काम से जा रहे है, यह काम तो काई भी कर लेगा, हम लोग अपना कार्य क्यों छोडें ? विद्यासागर ने कहा-``मानवता की सेवा से बढकर और कोई काम बड़ा हो ही नहीं सकता । इस निस्सहाय पीड़ित की उपेक्षा करके हम अपनी निष्ठुरता का प्रदर्शन ही करेंगे। निष्ठुर का कोई कार्य भला नहीं कहा जा सकता ।´´

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