महर्षि रमण एक सिद्ध पुरूष थे । मौन ही उनकी भाषा थी । उनके सान्निध्य में सत्संग के माध्यम से सबको एक जैसे ही संदेश मिलते थे, मानों वे वाणी से प्रवचन देकर उठे हों। सत्संग के स्थान पर उस प्रदेश के निवासी कितने ही प्राणी नियत स्थान और नियत समय पर , उनका संदेश सुनने आया करते थे । बंदर, तोते, साँप, कौए सभी को ऐसा अभ्यास हो गया कि आगंतुको की भीड़ से बिना डरे-झिझके अपने नियत स्थान पर आ बेठते थै । मौन सत्संग समाप्त होते ही अपने घोंसलो व स्थानों को चल दिया करते थे । महापुरुष का सान्निध्य होता ही ऐसा विलक्षण है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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