गुरुवार, 11 जून 2009

संत रैदास

रैदास की एक बार इच्छा हुई कि वे चितौड़ की रानी झाली के यहाँ जाएँ , जिसने काशीवास में आमंत्रण दिया था। संत के आने पर एक भंडारा हुआ। सभी विद्वज्जनो को आमंत्रण गया। एक अछूत चमड़ा गाँठने वाले का इतना सम्मान देख ब्राह्मणो ने यह निर्णय लिया कि आवश्वक खाद्य सामग्री लेकर वे स्वयं भोजन बनाएँगे। जब वे अलग से भोजन करने बैठे तो देखा कि हर ब्राह्मण पंड़ित की बगल में एक रैदास बैठे हैं। सभी रैदास के चरणो में गिर पड़े और क्षमा माँगी ।

2 टिप्‍पणियां:

pandit rakesh arya ने कहा…

छूआ- छूत हिन्दु ( वैदिक ) धर्म पर एक कलंक के समान है । इसे समूल नष्ट करना परम आवश्यक है ।

पँडित राकेश आर्य
ग्रा ॰ - दतियाना
मुजफ्फर नगर
उत्तर प्रदेश
08950108708

Sushil Krishna Bhagat ने कहा…

Vastava main chhua-chhut ek bimar soch hai.Ise se upar uth kar manviya byawhar hi karm-sadhna kahlayega.

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