रविवार, 29 जुलाई 2012

पहली रोटी गाय को खिलाएं, क्योंकि..

गाय हिंदु धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है।

पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ...ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है। भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।

सभी जीवों के भोजन का ध्यान रखना भी हमारा ही कर्तव्य बताया गया है। इसी वजह से यह परंपरा शुरू की गई है। पुराने समय में गाय को घास खिलाई जाती थी लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी है। जंगलों कटाई करके वहां हमारे रहने के लिए शहर बसा दिए गए हैं। जिससे गौमाता के लिए घास आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है और आम आदमी के लिए गाय के लिए हरी घास लेकर आना काफी मुश्किल कार्य हो गया है। इसी कारण के चलते गाय को रोटी खिलाई जाने लगी है।

प्रभावशाली व्यक्तित्व

प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी को कभी भी असफलता का मुख नहीं देखना पड़ता, वे आसानी के साथ दूसरों को प्रभावित कर लेते हैं तथा उन्हें अपना मित्र बना लेते हैं..मनुष्य की पहचान उसके व्यक्तित्व से ही होती है..नीचे कुछ बातें हैं जिनकी सहायता से हम अपने व्यक्तित्व का विकास करके स्वयं को प्रभावशाली बना सकते हैं !!

(1) दूसरों के प्रति स्वयं का व्यवहार- 
दूसरों को अपमानित न करें और न ही कभी दूसरों की शिकायत करें। याद रखें कि अपमान के बदले में अपमान ही मिलता है।

दूसरों में जो भी अच्छे गुण हैं उनकी ईमानदारी के साथ दिल खोल कर प्रशंसा करें। झूठी प्रशंसा कदापि न करें। यदि आप किसी की प्रशंसा नहीं कर सकते तो कम से कम दूसरों की निन्दा कभी भी न करें। किसी की निन्दा करके आपको कभी भी किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सकता उल्ट आप उसकी नजरों गिर सकते हैं।

अपने सद्भाव से सदैव दूसरों के मन में अपने प्रति तीव्र आकर्षण का भाव उत्पन्न करने का प्रयास करें।

सभी को पसंद आने वाला व्यक्तित्व

दूसरों में वास्विक रुचि लें। यदि आप दूसरों में रुचि लेंगे तो दूसरे भी अवश्य ही आप में रुचि लेंगे।

दूसरों को सच्ची मुस्कान प्रदान करें।

प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसका नाम सर्वाधिक मधुर, प्रिय और महत्वपूर्ण होता है। यदि आप दूसरों का नाम बढ़ायेंगे तो वे भी आपका नाम अवश्य ही बढ़ायेंगे। व्यर्थ किसी को बदनाम करने का प्रयास कदापि न करें।

अच्छे श्रोता बनें और दूसरों को उनके विषय में बताने के लिये प्रोत्साहित करें।

दूसरों की रुचि को महत्व दें तथा उनकी रुचि की बातें करें। सिर्फ अपनी रुचि की बातें करने का स्वभाव त्याग दें।

दूसरों के महत्व को स्वीकारें तथा उनकी भावनाओं का आदर करें।

(2) अपने सद्विचारों से दूसरों को जीतें
तर्क का अंत नहीं होता। बहस करने की अपेक्षा बहस से बचना अधिक उपयुक्त है।

दूसरों की राय को सम्मान दें। ‘आप गलत हैं’ कभी भी न कहें।

यदि आप गलत हैं तो अपनी गलती को स्वीकारें।

सदैव मित्रतापूर्ण तरीके से पेश आयें।

दूसरों को अपनी बात रखने का पूर्ण अवसर दें।

दूसरों को अनुभव करने दें कि आपकी नजर में उनकी बातों का पूरा पूरा महत्व है।

घटनाक्रम को दूसरों की दृष्टि से देखने का ईमानदारी से प्रयास करें।

दूसरों की इच्छाओं तथा विचारों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनायें।

दूसरों को चुनौती देने का प्रयास न करें।

(3) अग्रणी बनें: बिना किसी नाराजगी के दूसरों में परिवर्तन लायें
दूसरों का सच्चा मूल्यांकन करें तथा उन्हें सच्ची प्रशंसा दें।

दूसरों की गलती को अप्रत्यक्ष रूप से बतायें।

आपकी निन्दा करने वाले के समक्ष अपनी गलतियों के विषय में बातें करें।

किसी को सीधे आदेश देने के बदले प्रश्नोत्तर तथा सुझाव वाले रास्ते का सहारा लें।

दूसरों के किये छोटे से छोटे काम की भी प्रशंसा करें।

आपके अनुसार कार्य करने वालों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करें।

अपना और पराया

मनोहर वन में एक बार बहुत जोरों का तूफान आया | वैसा पहले न किसी ने देखा न सुना था | मूसलाधार पानी बरस रहा था, रह-रहकर बिजली कड़क रही थी कि सभी को उड़ाए ले जा रही थी | वृक्षों के कोटरों में रहने वाले नन्हें नन्हें पक्षियों के दिल काँप उठे | उस भयंकर तूफान में वृक्ष भी न खड़े रह पाए और एक-एक करके वे गिरने लगे |

जैसे-जैसे तूफान खत्म हुआ | पक्षी डरते-डरते अपने-अपने घोसलों से निकले | पूरे वन में दस पक्षी ही जीवित थे | शेष सभी उस तूफान की भेंट चढ़ चुके थे | अपने-अपने संबंधियों के शोक में वे सभी रोने लगे | दो दिन तक उन्होंने खाने की ओर मुँह तक भी न उठाया |

पूरे के पूरे वन में बस एक बरगद दादा ही बचे थे और सारे वृक्ष तूफान में गिर चुके थे | बरगद दादा से पक्षियों का दु:ख देखा न गया | उन्होंने प्यार से सभी को अपने पास इकट्ठा किया और बोले - "बच्चों ! जैसी स्थिति है उसका धैर्य से सामना करो | सोचो ! भगवान की इस लीला के आगे अब किया भी क्या जा सकता है ? सुख और दु:ख यह तो जीवन में निश्चित रूप से आते ही हैं ? उठो ! साहस से स्थिति का सामना करो | दु:ख को भी भगवान के प्रसाद के रूप में ले लो और नए सिरे से निर्माण में जुट जाओ | तुम्हारा जीवन अदभुत रूप से जगमगा उठेगा | "

-वृक्ष गंगा अभियान

नादिरशाह फकीर के पास गया। वहाँ उसने देखा कि परिंदे भी हैं, पानी भी हैं, अन्न भी हैं, फल भी है। फकीर ने उसके मन को पढ़ा और कहा कि परिंदों के कारण यहाँ अन्न-जल है। तुम इनसान जिंदा हो तो मात्र परिंदो के कारण। तुम्हारी क्रूरता ने, जल्लादी व्यवहार ने तो परिंदो को भी खतम कर दिया और वृक्ष भी समाप्त हो गए। 

आज पेड़ कट रहे है। परिंदे हमारे लिए पुण्य एकत्र करते हैं, वृक्षों की छाया में मात्र निवास चाहते है। पर हम उनका बसेरा उजाड़ रहे है। पथिकों को छाया, परिंदो को बसेरा, हमें फल-भोजन जंगलों से ही मिलते है। क्या हम समझेंगे कि वृक्षारोपण करने से ही हमारी भविष्य की पीढ़ी सुरक्षित रहेगी। इनसान व प्रकृति के बीच बड़ा सूक्ष्म आध्यात्मिक संबंध है। वह हमें जिंदा रखना है तो जंगल बचाने का-वृक्षों को लगाने का अभियान-वृक्ष गंगा अभियान लोकप्रिय बनाना होगा। 

अखण्ड ज्योति जुलाई 2011

बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं, गुण दें


(प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश )

सुख का निवास सदगुणों में है, धन-दौलत में नहीं | जो धनी है और साथ में दुर्गुणी भी, उसका जीवन दुःखों का आगार बन जाता है | दुर्गुण एक तो यों ही दुःख के स्रोत होते हैं फिर उनको धन-दौलत का सहारा मिल जाये तब तो वह आग जैसी तेजी से भड़क उठते हैं जैसे हवा का सहारा पाकर दावानल| मानवीय व्यक्तित्व का पूरा विकास सदगुणों से ही होता है | निम्नकोटि के व्यक्तित्व वाला मनुष्य उत्तराधिकार में पाई हुई सम्पत्ति को शीघ्र ही नष्ट कर डालता है और उसके परिणाम में न जाने कितना दुःख, दर्द, पीड़ा, वेदना, ग्लानी, पश्चाताप और रोगपाल लेता है |

जो अभिभावक अपने बच्चों में गुणों का विकास करने की ओर से उदासीन रहकर उन्हें केवल, उत्तराधिकार में धनदौलत दे जाने के प्रयत्न तथा चिंता में लगे रहते हैं वे भूल करते हैं | उन्हें बच्चों का सच्चा हितैषी भी कहा जा सकना कठिन है | गुणहीन बच्चों को उत्तराधिकार में धन-दौलत दे जाना पागल को तलवार दे जाने के समान है | इससे वह न केवल अपना ही अहित करेगा बल्कि समाज को भी कष्ट पहुँचायेगा | यदि बच्चों में सदगुणों का समुचित विकास न करके धन-दौलत का अधिकारी बना दिया गया और यह आशा की गई की वे इसके सहारे जीवन में सुखी रहेंगे तो किसी प्रकार उचित न होगा | ऐसी प्रतिकूल स्थिति में वह सम्पत्ति सुख देने में तो दूर उलटे दुर्गुणों तथा दुःखों को ही बढ़ा देगी |

यही कारण तो है कि गरीबों के बच्चे अमीरों की अपेक्षा कम बिगड़े हुए दीखते हैं | गरीब आदमियों को तो रोज कुआँ खोदना और रोज पानी पीना होता है | शराबखोरी, व्याभिचार अथवा अन्य खुराफातों के लिए उनके पास न तो समय होता है और न फालतू पैसा | निदान वे संसार के बहुत से दोषों से आप ही बच जाते हैं | इसके विपरीत अमीरों के बच्चों के पास काम तो कम और फालतू पैसा व समय ज्यादा होता है जिससे वे जल्दी ही गलत रास्तों पर चलते हैं | इसलिए आवश्यक है कि अपने बच्चों का जीवन सफल तथा सुखी बनाने के इच्छुक अभिभावक उनको उत्तराधिकार में धन-दौलत देने की अपेक्षा सदगुणी बनाने की अधिक चिंता करें | यदि बच्चे सदगुणी हों तो उत्तराधिकार में न भी कुछ दिया जाये तब भी वे अपने बल पर सारी सुख-सुविधाएँ इक्ट्ठी कर लेंगे | गुणी व्यक्ति को धन-सम्पती के लिए किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रहती |

१ बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें 
२ शिशु निर्माण में अभिभावकों का उत्तरदायित्व 
३ संतान पालन की शिक्षा भी चाहिए 
४ बच्चे घर की पाठशाला में 
५ शांति स्नेह और सौम्यता के प्यासे बालक 
६ बालकों का समुचित विकास आवश्यक 
७ बच्चों का पालन पोषण कैसे करें ? 
८ बालकों का विकास इस तरह होगा 
९ बालकों के निर्माण में माता का हाथ 
१० बच्चों को डराया न करें 
११ बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिये 
१२ बच्चों को सभ्य और सामाजिक बनाइए 
१३ बच्चे झगडालू क्यों हो जाते हैं ? 
१४ बच्चों को हठी न होने दीजिए 
१५ बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाए ? 
१६ बच्चों के मित्र बनकर उन्हें व्यवहार कुशल बनाएँ 
१७ बच्चों को व्यवहार कुशल बनाइये 
१८ बालकों के निर्माण का आधार 
१९ बालकों के निर्माण का आधार 
२० बालकों की शिक्षा में चरित्र निर्माण का स्थान 
२१ किशोरों के निर्माण में सावधानी बरती जाए 
२२ बच्चों की उपेक्षा न कीजिए 
२३ बाल अपराध की चिंता जनक स्थिति 
२४ बाल अपराध बढे तो राष्ट्र गिर जाएगा 
२५ बच्चे अपराधी क्यों बनते है ? 
२६ बालकों को अपराधी बनाने वाला अपराधी समाज 
२७ क्या दंड से बच्चे सुधरते हैं ? 
२८ बच्चों को दंड नहीं दिशाएँ दें

दुख क्या हैं ?

इच्छाएं दरिद्र बनाती हैं। उनसे ही याचना और दासता पैदा होती हैं। फिर, उनका कोई अंत भी नहीं हैं। जितना उन्हे छोड़ो, उतना ही व्यक्ति स्वतंत्र और समृद्ध होता हैं। जो कुछ भी नहीं चाहता हैं, उसके स्वतंत्रता अनंत हो जाती है। 


एक सन्यासी के पास कुछ रूपये थे। उसने कहा कि वह उन्हें किसी गरीब आदमी को देना चाहता हैं। बहुत से गरीब लोगों ने उसे घेर लिया और उससे रूपयों की याचना की। उसने कहा, मैं अभी देता हूँ - मैं अभी उसे रूपये दिए देता हूं जो इस जगत मे सबसे ज्यादा गरीब और भूखा हैं। यह कहकर सन्यासी भीतर गया। तभी लोगों ने देखा कि राजा की सवारी आ रही है। वे उसे देखने में लग गए। इसी बीच सन्यासी बाहर आया और उसने अपने रूपये हाथी पर बैठे राजा के पास फेंक दिए। राजा ने चकित हो, इसका कारण पूछा, फिर लोगो ने भी कहा कि आप तो कहते थे कि मैं रूपये सर्वाधिक दरिद्र व्यक्ति को दूंगा। सन्यासी ने हँसते हुए कहा-मैंने उन्हे दरिद्रतम व्यक्ति को ही दिया हैं। वह जो धन की भूख में सबसे आगे हैं, क्या सर्वाधिक गरीब नही हैं ?

दुख क्या हैं ? कुछ पाने की और कुछ होने की आकांक्षा ही दुःख हैं। दुख कोई नहीं चाहता, लेकिन आकांक्षाएं हो तो दुख बना ही रहेगा। किंतु, जों आकांक्षाओं के स्वरूप को समझ लेता हैं, वह दुख से नहीं, आकांक्षाओ से ही मुक्ति खोजता हैं। जब हम इच्छाओं और आकांक्षाओं के घेरे से बाहर आ जाते हैं तो दुख अपने आप दूर हो जाते हैं। और दुख के आगमन का द्वार अपने आप ही बंद हो जाता है। 

-ओशो

आत्मिक तृप्ति का आधार

संसार के प्रमुख दार्शनिकों का मत है कि जीव की स्वाभाविक इच्छा और अभिलाषा आत्मिक उन्नति की है। भौतिक सुविधाओं को लोग इकट्ठा करते हैं, इन्द्रियों के विष भोगते हैं, पर बारीक दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि ये सब कार्य भी आत्मिक तृप्ति के लिये किये जाते है। यह दूसरी बात है कि धुँधली दृष्टि होने के कारण लोग नकल को ही असल समझ बैठें। आपने बड़े परिश्रम से धन इकट्ठा किया है, किन्तु विवाह मे उसे बड़ी उदारता के साथ खर्च कर देते है। उस दिन एक पैसे के लिये प्राण दिये मरते थे, आज आप अशर्फिया क्यों लूटा रहे है? इसलिये कि आज आप धन संचित रखने की अपेक्षा उसे खर्च कर डालने में अधिक सुख का अनुभव करते हैं। डाकू जिस धन का जान हथेली पर रखकर लाया था, उसे मदीरा पीनें में इस तरह क्यों उड़ा रहा है? इसलिये कि वह मदीरा पीने के आंनद को धन जोड़ने की अपेक्षा अधिक महत्व देता है। बीमारी में धर्म कार्यो मे, या अन्य बातों पर काफी पैसा खर्च हो जाता है, किन्तु मनुष्य कुछ भी रंज नही करता है। यही पैसा यदि चोरी मे चला जाता है तो उसे बड़ा दुख होता है। इन उदाहरणों से आप देखते है कि जिनका अमूल्य धन-संचय में खर्च हुआ जा रहा है। वे अपने उस जीवन रस को भी एक समय बड़ी लापरवाही के साथ उड़ा देते है। ऐसा इसलिये होता है कि उन खर्चीले कामों में आदमी अधिक आंनद का अनुभव करता है।

अखण्ड ज्योति जून 1980 पृष्ठ 16

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin