रविवार, 29 जुलाई 2012

अपना और पराया

मनोहर वन में एक बार बहुत जोरों का तूफान आया | वैसा पहले न किसी ने देखा न सुना था | मूसलाधार पानी बरस रहा था, रह-रहकर बिजली कड़क रही थी कि सभी को उड़ाए ले जा रही थी | वृक्षों के कोटरों में रहने वाले नन्हें नन्हें पक्षियों के दिल काँप उठे | उस भयंकर तूफान में वृक्ष भी न खड़े रह पाए और एक-एक करके वे गिरने लगे |

जैसे-जैसे तूफान खत्म हुआ | पक्षी डरते-डरते अपने-अपने घोसलों से निकले | पूरे वन में दस पक्षी ही जीवित थे | शेष सभी उस तूफान की भेंट चढ़ चुके थे | अपने-अपने संबंधियों के शोक में वे सभी रोने लगे | दो दिन तक उन्होंने खाने की ओर मुँह तक भी न उठाया |

पूरे के पूरे वन में बस एक बरगद दादा ही बचे थे और सारे वृक्ष तूफान में गिर चुके थे | बरगद दादा से पक्षियों का दु:ख देखा न गया | उन्होंने प्यार से सभी को अपने पास इकट्ठा किया और बोले - "बच्चों ! जैसी स्थिति है उसका धैर्य से सामना करो | सोचो ! भगवान की इस लीला के आगे अब किया भी क्या जा सकता है ? सुख और दु:ख यह तो जीवन में निश्चित रूप से आते ही हैं ? उठो ! साहस से स्थिति का सामना करो | दु:ख को भी भगवान के प्रसाद के रूप में ले लो और नए सिरे से निर्माण में जुट जाओ | तुम्हारा जीवन अदभुत रूप से जगमगा उठेगा | "

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