रविवार, 29 जुलाई 2012

बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं, गुण दें


(प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश )

सुख का निवास सदगुणों में है, धन-दौलत में नहीं | जो धनी है और साथ में दुर्गुणी भी, उसका जीवन दुःखों का आगार बन जाता है | दुर्गुण एक तो यों ही दुःख के स्रोत होते हैं फिर उनको धन-दौलत का सहारा मिल जाये तब तो वह आग जैसी तेजी से भड़क उठते हैं जैसे हवा का सहारा पाकर दावानल| मानवीय व्यक्तित्व का पूरा विकास सदगुणों से ही होता है | निम्नकोटि के व्यक्तित्व वाला मनुष्य उत्तराधिकार में पाई हुई सम्पत्ति को शीघ्र ही नष्ट कर डालता है और उसके परिणाम में न जाने कितना दुःख, दर्द, पीड़ा, वेदना, ग्लानी, पश्चाताप और रोगपाल लेता है |

जो अभिभावक अपने बच्चों में गुणों का विकास करने की ओर से उदासीन रहकर उन्हें केवल, उत्तराधिकार में धनदौलत दे जाने के प्रयत्न तथा चिंता में लगे रहते हैं वे भूल करते हैं | उन्हें बच्चों का सच्चा हितैषी भी कहा जा सकना कठिन है | गुणहीन बच्चों को उत्तराधिकार में धन-दौलत दे जाना पागल को तलवार दे जाने के समान है | इससे वह न केवल अपना ही अहित करेगा बल्कि समाज को भी कष्ट पहुँचायेगा | यदि बच्चों में सदगुणों का समुचित विकास न करके धन-दौलत का अधिकारी बना दिया गया और यह आशा की गई की वे इसके सहारे जीवन में सुखी रहेंगे तो किसी प्रकार उचित न होगा | ऐसी प्रतिकूल स्थिति में वह सम्पत्ति सुख देने में तो दूर उलटे दुर्गुणों तथा दुःखों को ही बढ़ा देगी |

यही कारण तो है कि गरीबों के बच्चे अमीरों की अपेक्षा कम बिगड़े हुए दीखते हैं | गरीब आदमियों को तो रोज कुआँ खोदना और रोज पानी पीना होता है | शराबखोरी, व्याभिचार अथवा अन्य खुराफातों के लिए उनके पास न तो समय होता है और न फालतू पैसा | निदान वे संसार के बहुत से दोषों से आप ही बच जाते हैं | इसके विपरीत अमीरों के बच्चों के पास काम तो कम और फालतू पैसा व समय ज्यादा होता है जिससे वे जल्दी ही गलत रास्तों पर चलते हैं | इसलिए आवश्यक है कि अपने बच्चों का जीवन सफल तथा सुखी बनाने के इच्छुक अभिभावक उनको उत्तराधिकार में धन-दौलत देने की अपेक्षा सदगुणी बनाने की अधिक चिंता करें | यदि बच्चे सदगुणी हों तो उत्तराधिकार में न भी कुछ दिया जाये तब भी वे अपने बल पर सारी सुख-सुविधाएँ इक्ट्ठी कर लेंगे | गुणी व्यक्ति को धन-सम्पती के लिए किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रहती |

१ बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें 
२ शिशु निर्माण में अभिभावकों का उत्तरदायित्व 
३ संतान पालन की शिक्षा भी चाहिए 
४ बच्चे घर की पाठशाला में 
५ शांति स्नेह और सौम्यता के प्यासे बालक 
६ बालकों का समुचित विकास आवश्यक 
७ बच्चों का पालन पोषण कैसे करें ? 
८ बालकों का विकास इस तरह होगा 
९ बालकों के निर्माण में माता का हाथ 
१० बच्चों को डराया न करें 
११ बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिये 
१२ बच्चों को सभ्य और सामाजिक बनाइए 
१३ बच्चे झगडालू क्यों हो जाते हैं ? 
१४ बच्चों को हठी न होने दीजिए 
१५ बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाए ? 
१६ बच्चों के मित्र बनकर उन्हें व्यवहार कुशल बनाएँ 
१७ बच्चों को व्यवहार कुशल बनाइये 
१८ बालकों के निर्माण का आधार 
१९ बालकों के निर्माण का आधार 
२० बालकों की शिक्षा में चरित्र निर्माण का स्थान 
२१ किशोरों के निर्माण में सावधानी बरती जाए 
२२ बच्चों की उपेक्षा न कीजिए 
२३ बाल अपराध की चिंता जनक स्थिति 
२४ बाल अपराध बढे तो राष्ट्र गिर जाएगा 
२५ बच्चे अपराधी क्यों बनते है ? 
२६ बालकों को अपराधी बनाने वाला अपराधी समाज 
२७ क्या दंड से बच्चे सुधरते हैं ? 
२८ बच्चों को दंड नहीं दिशाएँ दें

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