सोमवार, 15 जून 2009

ठक्कर बापा

मुंबई कार्पोरेशन में एक इंजिनियर की नौकरी पाने के बाद वह युवा निरंतर भ्रमण करता । उसे स्वच्छता और प्रकाश की व्यवस्था सौंपी गई । उसे मेहतरों की बस्तियों में जाने के बाद, उनकी दुरवस्था देखने का अवसर मिला । बच्चे असहाय, अशिक्षित, गंदे थे । पुरूष शराब पीते-लड़ते व पत्नियाँ दिन भर बच्चों से मार-पीट करतीं। जुए-शराब ने सभी को कर्जदार बना दिया था। इस प्रत्यक्ष नरक को देखकर उस इंजीनियर ने अपनी आधिकारिक स्थिति के मुताबिक कुछ प्रयास किए, पर कही से कोई सहयोग न मिलने पर नौकरी छोड़ दी और `भारत सेवक समाज´ का आजीवन सदस्य बन गया । उसने सारा जीवन गंदी बस्तियों में अछूतो के उद्धार, उन्हे शिक्षा देने , गंदी आदतें छुड़वाने, उन्हे साफ रखने के प्रयासों में लगा दिया । वही युवक `ठक्कर बापा ´ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । आज के शहरीकृत भारत को, जो और भी गंदा है, हजारो ठक्कर बापा चाहिए।

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