1) प्रामाणिकता मानव जीवन की सबसे बडी उपलब्धि है। वह उत्तरदायित्व निबाहने, मर्यादाओ का पालन करने और कर्तव्य पालन में सतत् जागरुक रहने वालो को ही मिलती है।
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2) प्रामाणिकता ही प्रतिष्ठा की आधारशिला है।
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3) प्रार्थना प्रातःकाल की चाबी और सांयकाल की सांकल है।
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4) प्रार्थना से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढती हैं।
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5) प्रार्थना वही कर सकता हैं जिसकी आत्मा उच्च हो।
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6) प्रारम्भ सुंदर अंत भयंकर यह हैं-भोग,
प्रारम्भ कष्टदायक, अंत आनन्ददायक यह हैं-त्याग।
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7) प्रज्ञा का अर्थ हैं-स्वविवेक। इतना दृढ जिसमें अपना संकल्प ही मूर्तिमान हो सके। किसी से पूछने की कोई गुंजाइश ही न रहे।
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8) प्राचीन महापुरुषों के जीवन से अपरिचित रहना जीवन भर निरन्तर बाल्य अवस्था में रहना है।
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9) प्राचीन समय में जब धरती का वातावरण सतयुगी था तो प्रत्येक व्यक्ति उत्कृष्ट चिन्तन और श्रेष्ठ आचरण वाला ऋषि पैदा हुआ करता था। तब उनकी जनसंख्या तैतीस करोड थी। इसी कारण कर्मकाण्डो में तैंतीस कोटि देवताओं के रुप में आज भी उनका आवाहन और स्थापन किया जाता हैं।
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10) प्रातः धर्म सेवन, मध्यान्ह अर्थ सेवन और रात्रि काम सेवन करना चाहिये।
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11) प्रसन्न रहना ईश्वर की सबसे बडी सेवा है।
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12) प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं - आवश्यकतायें कम करे और परिस्थितियों से तालमेल बिठाये।
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13) प्रसन्नचित्त व्यक्ति अधिक जीते है।
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14) प्रसन्नता सब सद्गुणों की जननी है।
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15) प्रत्येक का उपदेश सुनो पर अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को दो।
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16) प्रत्येक पापी का भविष्य हैं, जैसे हर संत का एक भूत था।
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17) प्रत्येक व्यक्ति जिससे में मिलता हू, किसी न किसी बात में मुझसे बढकर हैं और वही में उससे सीखता हूँ।
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18) प्रेम की ही पराकाष्ठा प्रार्थना बन जाती है।
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19) प्रेम को जगाओ। और मै जानता हूँ कि तुम परमात्मा के प्रेम में एकदम नहीं पड सकते। तुमने अभी पृथ्वी का प्रेम भी नहीं जाना, तुम स्वर्ग का प्रेम कैसे जान पाओगे ? इसलिये मैं निरन्तर कह रहा हूँ कि मेरा संदेश प्रेम का हैं। पृथ्वी के प्रेम को तो जानो, तो फिर वही प्रेम तुम्हे परमात्मा के प्रेम की तरफ ले चलेगा। ओशो।।
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20) प्रेम के बिना ज्ञान बिना मल्लाह की नौका है।
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21) प्रेम में मनुष्य सब कुछ देकर भी यह सोचता हैं कि अभी कम दिया है।
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22) प्रेम में स्थिरता और दीर्घता लाने के लिए मनुष्य के पास विशाल मस्तिष्क भी होना चाहिये।
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23) प्रेम ही आत्मा का प्रकाश है, जो इस प्रकाश मे जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं उसके संसार में शूल नहीं फूल नजर आता है।
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24) प्रेम सबसे करो, विश्वास कुछ पर करों, बुरा किसी का मत करो।
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1 टिप्पणी:
मैं बचपन से ही अखंड ज्योति पढ़ता आ रहा हूँ ।
आपके शीर्षक की बात के अलावा सबसे सहमत हूँ ।
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