गुरुवार, 14 जुलाई 2011

परिवर्तन से डरोगे तो तरक्की कैसे करोगे ?

1) पढिबे को फल गुनब हैं, गुनबे को फल ज्ञान। ज्ञान को फल हरिनाम हैं, कहि श्रुति संत पुराण।
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2) परिस्थिति ही महापुरुषो का विद्यालय है।
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3) परिस्थिति सदा अनुकूल ही रहें, ऐसी आशा न करों। संसार केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बना है।
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4) परिश्रम ही सफलता की कुन्जी है। यदि आपने वाकई परिश्रम किया हैं तो यकीन मानिये सफलता आपकी ही राह देख रहीं है।
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5) परिवार-नियोजन कार्यक्रम से आयु और कम होंगी तथा रोग बढेंगे। स्वामी रामसुखदास जी महाराज।
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6) परिवारों में सुसंस्कारिता बोये, सर्वतोन्मुखी प्रगति के दृश्य देखे।
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7) परिवर्तन से डरोगे तो तरक्की कैसे करोगे ?
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8) परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना मनुष्य की सबसे बडी कायरता है।
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9) पडित/संत-जो शास्त्रों के पीछे दौडता हैं, वह पंडित है। और जो सत्य के पीछे दौडता है, वह संत है। पंडित शास्त्रो के पीछे दौडता है। जबकि संत के पीछे शास्त्र दौडतें हैं। शास्त्र पढकर जो बोले वह पंडित और सत्य पाकर जो बोले वह संत हैं। पंडित जीभ से बोलता है, संत जीवन से बोलता हैं, जिसका जीवन बोलने लगे, वह जीवित भगवान है।
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10) पवित्र बनने के लिए प्रेम की आँख चाहिए। पुण्यवान बनने के लिए श्रद्धा की आँख चाहिए। प्रसन्न रहने के लिए आशा की आँख चाहिए। प्रभु दर्शन पाने के लिए प्रतीक्षा की आँख चाहिए।
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11) पवित्र विचारों से ओत-प्रोत व्यक्ति की ईश्वर व प्रकृति भी सहायता करने लगते है।
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12) पतिव्रता नारी गरीब-से-गरीब घर को स्वर्ग बना देती है।
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13) पीढियों को सुसंस्कृत बनाना हैं तो महिलाओ को सुयोग्य बनाओ।
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14) पीपल को अति प्राचीन, पवित्र एवं दिव्य वृक्ष माना हैं, जो अपने चारो ओर वातावरण में सतोगुणी विचार एवं भाव घोलता रहता है।
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15) पीपल के मूल में शनिवार के दिन काले तिल, दूध और जल या गंगाजल मिलाकर डालने से पाप-तापों का शमन होता हैं । शनिवार की शाम या रात को सरसों तेल का दीपक जलाने का भी विधान है।
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16) पीतल और सोने में, काँच और रत्न में जो अन्तर हैं वही अन्तर सांसारिक सम्पत्ति और आध्यात्मिक सम्पदा के बीच में भी है।
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17) पर दोष दर्शन एवं अपने गुण दर्शन का त्याग करना चाहिये।
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18) परमपिता परमेश्वर आपकी जीवन-साधना को परिपक्व और प्रखर करे। आपकी अंतर्निहित शक्तिया जाग्रत हो। जीवन सफलता और समृद्धि की ओर अग्रसर होता रहे। यश एवं कीर्ति के गान जिंदगी के आंगन में गूँजते रहे। उल्लास और उमंगो की नई तरंगो का स्पर्श मिलता रहे। आंतरिक प्रसन्नता व संतोष से अंतःकरण का हर कोना सुवासित होता रहे। ऐसी मंगलकामना।
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19) परम्पराओ की तुलना में विवेक को महत्व दीजिये।
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20) परमपूज्य गुरुदेव ने पाठक मनोविज्ञान को पढने का प्रयास किया था। देखा कि आत्मज्ञान घुट्टी कडवी हैं व इसे सुगर कोटेड गोली के रुप में देना हैं तो जिज्ञासा को जिन्दा बनाये रखकर धीरे-धीरे इन सभी विषयों के प्रति आकर्षण को प्रगतिशील मोड देना होगा। यही विचार-परिवर्तन हैं, ब्रेनवाशिंग हैं। वस्तुतः यह बडी धीमी प्रक्रिया होती है।
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21) परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि अपने अन्तःकरण के अतिरिक्त और कोई भी अपनी गतिविधियों की समीक्षा कर सकने लायक नहीं है।
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22) परमार्थ की साहसिकता अपनाने वाले पर सम्मान बरसता है।
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23) परमात्मा की उपासना के साथ कामनाए जोडना ओछापन है।
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24) परमात्मा का ज्ञान परमात्मा से अभिन्न होने पर ही होता हैं और संसार का ज्ञान संसार से अलग होने पर ही होता है-यह बात आप याद कर ले।

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