1) बुद्धि की शक्ति उसके उपयोग में हैं, विश्राम में नही।
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2) बुद्धि निश्चयात्मिका हैं और मन संशयात्मक है।
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3) बुद्धि प्रेय मार्ग पर ले जाती हैं और प्रज्ञा श्रेय मार्ग पर ले जाती हैं।
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4) बुद्धि संसार की ओर ले जाती हैं और प्रज्ञा परमानन्द की ओर ले जाती है।
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5) बुद्धि वैभव चमत्कारी तो हैं, पर हृदय की विशालता से बढकर उसकी गरिमा हैं नहीं।
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6) बुद्धिमान मनुष्य कहलाता हैं और दयावान भगवान।
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7) बुद्धिमान किसी को गलतियों से हानि होते देखकर अपनी गलतिया सुधार लेते हैं।
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8) बुद्धिमान दूसरों की त्रुटियों से अपनी गलतियों को सुधारते है।
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9) बुद्धिमान व्यक्ति सदैव आत्म सन्तुष्टि रुपी लौ को अपनी इच्छाओं की आहुति से प्रकाशवान बनाये रखता है।
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10) बुराई का उत्तर भलाई से दो।
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11) बुरे समय में तीन सच्चे साथी होते हैं- धैर्य, साहस और प्रयत्न। जो इन तीनो को साथ रखता हैं, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
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12) बुरे स्वभाव वाला मनुष्य जिस योनि में जायेगा, वहीं दुःख पायेगा। मरने पर स्वभाव साथ में जाता है।
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13) बेकार काम के लिये फुरसत तभी रहती हैं, जब सामने लक्ष्य न हो।
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14) बेरिस्टर मोहन दास कर्मचन्द गांधी भारतीय परिधान को अपना कर ही महात्मा गांधी बन सके।
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15) बना इन्द्रिया को जो दास, उसका कौन करे विश्वास।
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16) बूँद-बूँद से सागर बनता हैं और क्षण-क्षण से जीवन। बूँद को जो पहचान ले, वह सागर को जान लेता है और क्षण को जो पा ले, वह जीवन को पा लेता हैं। क्षण में शाश्वत की पहचान ही जीवन का आध्यात्मिक रहस्य है।
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17) बगीचे में फूल खिलते हैं, वातावरण सुगन्धित हो जाता हैं। मन में उत्तम विचार खिलते है, जीवन सुगन्धित हो जाता हैं। यही सुगन्धित जीवन हमारा लक्ष्य हो।
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18) ब्रह्म ज्ञान बिनु बात न करहीं, पर निन्दा करि विष रस भरही।।
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19) ब्रह्म संकल्प से प्रकट हुयी इस सृष्टि के रक्षण और पोषण में ब्रह्म के सहयोगी बनते हैं, उन्हे ब्राह्मण कहा जाता है।
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20) ब्रह्मवर्चस का अर्थ है-ब्रह्म विद्या व व्यावहारिक तप साधना का समन्वय, अध्यात्म तथा विज्ञान का समन्वय, सिद्धान्त व व्यवहार का समन्वय।
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21) ब्रह्मचर्य का अर्थ - ब्रह्म में विचरण अर्थात् सतत् मन, वचन से परमात्मा का चिन्तन करना ही ब्रह्मचर्य हैं। स्वामी विवेकानन्दजी।
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22) ब्राह्मण जन्म से नहीं जीवन-साधना से बना करते है।
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23) ब्राह्मण अर्थात् लिप्सा से जूझ सकने योग्य मनोबल का धनी, प्रलोभनो और दबाओं का सामना करने में समर्थ। औसत भारतीय स्तर के निर्वाह में काम चलाने से सन्तुष्ठ।
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24) ब्राह्मण और गायत्री एक ही सिक्के के दो पहलू है।
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