मंगलवार, 17 मई 2011

अपनी समस्याओं के लिए हम ही ज़िम्मेदार

जिस प्रकार मकड़ी अपने लिए अपना जाल स्वयं बुनती है। उसे कभी-कभी बंधन समझती है तो रोती-कलपती भी है किन्तु जब भी उसे वस्तुस्थिति की अनुभूति होती है तो समूचा मकड़-जाल समेट कर उसे गोली बना लेती है और पेट में निगल लेती है। अनुभव करती है कि सारे बंधन कट गए और जिस स्थिति में अनेकों व्यथा-वेदनाएँ सहनी पड़ रही थी, उसकी सदा-सर्वदा के लिए समाप्ति हो गई।

उसी प्रकार हर मनुष्य अपने लिए, अपने स्तर की दुनिया, अपने हाथों आप रचता है। उसमें किसी दूसरे का कोई हस्तक्षेप नहीं है। दुनिया की अड़चनें और सुविधायें तो धूप-छाँव की तरह आती-जाती रहती है।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना-आराधना (२)- ३.१

Who creates problems ?

A spider spins its own web and remains entangled in it. At some point it starts to think that its web is its confinement and laments being trapped in it. However, when it realizes the root of the problem, it dismantles the web which it created, gulps down the threads and sets itself free. As a result, the spider experiences the joy of freedom by removing all the barriers responsible for its miseries.

In the same way, every individual creates his own cocoon, his own little world. He alone creates this world with no outside interferences and influences. The hindering and facilitating circumstances imposed by the outside world, they are just temporary and keep appearing and disappearing like the ebb and flow of the tide.

-Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from - Pandit Shriram Sharma Acharya’s work
Jivan Devta ki sadhana-aradhana 2:3.1

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