शनिवार, 14 मई 2011

महानता के बीज

1) धन का उपार्जन ही नहीं, सदुपयोग भी समझे।
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2) धन उन्ही के पास ठहरता हैं, जो सद्गुणी है।
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3) धन गया तो कुछ गया, स्वास्थ्य गया तो बहुत कुछ गया और चरित्र गया तो समझो सब कुछ चला गया।
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4) धन्य हैं वह पुरुष जो काम करने से कभी पीछे नहीं हटता, भाग्य लक्ष्मी उसके घर की राह पूछतें हुये आती है।
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5) धनी वह हैं जो सोचता हैं कि अपनी सामर्थ्य से हर किसी के आँसू पोछ दू।
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6) धनवान बनना इतना आवश्यक नहीं कि उसके लिये ईमान छोड दे।
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7) धनुर्धर वे नहीं जिनका तीर निशाने पर लगता हैं, वरन् वे हैं जो लक्ष्य वेधकर दिखाते है।
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8) ध्वंस में नहीं सृजन में मनुष्य का शौर्य परखा जाता हे।
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9) यश, काव्य एवं सम्पत्तियाँ वहीं श्रेष्ठ हैं, जिसमें गंगासदृश सभी का हित समाहित हो।
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10) यम-नियम:- यम अर्थात् विधान और नियम अर्थात् अनुशासन।
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11) यर्थाथ शिक्षण हमारे विचार नहीं कर्म देते है।
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12) यदि कभी मालूम करना हो कि व्यक्ति में आध्यात्मिक जीवन कितना विकसित हुआ हैं तो यह परखो कि उसकी संकल्प शक्ति कितनी विकसित हुई है।
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13) यदि कोई हमारा दोष सिद्ध करे तो उसके लिये जहा तक हो, सफाई नहीं देनी चाहिये, क्योंकि सफाई देने से दोषों की जड़ता जमती हैं तथा दोष बतलाने वाले के चित्त में भविष्य के लिये रुकावट होती हैं।इससे हम निर्दोष नहीं हो पाते हैं।
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14) यदि कोई व्यक्ति गीता का ठीक तरह से अध्ययन करेगा तो हरेक विषय में उसकी बुद्धि प्रवेश करेगी।
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15) यदि कोई आपको सफल होने में सहयोग देता हैं तो यह आपका भी कर्तव्य बन जाता हैं कि आप उसकी सच्ची सेवा करे। 
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16) यदि कुछ बोलने की इच्छा हो तो सदा सत्य और मधुर तथा हितकारी वचन बोलो।
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17) यदि मरणासन्न व्यक्ति बेहोश हो जाय तो भी उसको भगवन्नाम सुनाना चाहिये। प्राण होश में ही जाते हैं, बेहोशी में नहीं। जिस चिन्तन में वह बेहोश होगा, उसी चिन्तन में होश आयेगा।
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18) यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी हर एक भूल उसे कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य दे सकती है।
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19) यदि किसी से बचना हो तो पाप से बचो।
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20) यदि हम शिक्षक है तो स्वयं को कुछ इस तरह से गढे कि हमारे छात्र-छात्रायें हमारा अनुकरण करने में गौरवान्वित अनुभव करे।
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21) यदि हम निर्दोष हैं तो दोष सुनकर मौन हो जाना चाहिये, इससे हमारी कोई हानि नहीं हैं और यदि सदोष हैं तो अपना सुधार करना चाहिये।
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22) यदि हम प्रसन्न हैं तो सारी प्रकृति हमारे साथ मुस्कराती प्रतीत होती है।
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23) यदि हम सुख की खोज अपने भीतर करने लगे तो इच्छाओं की निस्सारता अपने आप प्रकट होने लगती हैं।
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24) यदि हम जीभ से भगवन्नाम लेंगे तो सभी अंग पुष्ट हो जायेंगे।

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