शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

विनय

कठोरता तो सदा ही अल्पजीवी हुआ करती हैं और मृदुता को दीर्घ जीवन का वरदान मिला ही हैं। जो व्यक्ति नम्र नहीं होता, विनम्र नहीं होता उसे कोई भी पसन्द नहीं करता।

एक चीनी संत ने अंतिम समय अपने शिष्यों को बुलाया और कहा, ‘तनिक मेरे मुंह में तो झांको और देखो कि कितने दांत शेष हैं ? प्रत्येक शिष्य ने देखा और कहा, ‘गुरूदेव, दांत तो कभी के टूट गए। मुख में तो एक भी दांत नहीं हैं।’ गुरू ने पूछा, ‘जिव्हा तो हैं ?’ शिष्यों ने कहा, हां।’ तब गुरू ने कहा, ‘दांत बाद में आए और पहले चले गए। जिव्हा जन्म से आई और मरने तक रही। आखिर ऐसा क्यों ? शिष्यों को मौन देखकर संत ने रहस्य खोलते हुए कहा, ‘कठोरता अल्पजीवी होती है।, दांत कठोर होते हैं, अतः जल्दी ही टूट जाते हैं। मृदुता दीर्घजीवी होती हैं। जिव्हा मृदु होती हैं, उसमें एक भी हड्डी नहीं होती इसलिए वह जीवन के अंतिम क्षणों तक बनी रहती हैं।’

हम भी मृदु बनें, विनम्र बनें। बुजुर्ग और गुरूजनों के सामने नम्रता से पेश आएं। दूसरों का सम्मान करना सीखें। विनयशील व्यक्ति जीवन में समस्त संपदाओं को सहज में ही प्राप्त कर लेता हैं। इसलिए कहा हैं कि विनय ही मोक्ष का द्वार हैं।(विणओ मोक्खं द्वार) विनय ही उन्नति का पहला सोपान हैं। विनय ही जीवन का धर्म हैं। विनयहीन दीन ही बना रहता हैं। परमात्मा की संपदा का एकमात्र अधिकारी विनयशील व्यक्ति हैं। विनय ही शून्य से पूर्ण होने की यात्रा हैं। विनयहीन व्यक्ति सदा रिक्त बना रहता हैं। 

-मुनि तरूणसागर

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