एक राजा था। वह हर समय चापलूसों से घिरा रहता था। एक दिन कुछ सियार चिल्ला रहे थे। राजा ने सभासदों से पूछा, ‘सियार क्यों रो रहे हैं ? चापलूसों ने कहा, महाराज ! यदि इनको कुछ खाने को दिया जाए, तो ये फिर नहीं रोएंगे।’ राजा ने कहा, ‘ इनके भोजन-पानी का प्रबन्ध कर दो।’ चापलूसों ने रूपये लिए, आपस में बांटा और अपने-अपने घर की ओर चले गए। दूसरे दिन देखा तो सियार फिर रो रहे थे। राजा ने पूछा, ‘अब क्यों रो रहे है ? चापलूसों ने कहा, राजन् ! अब ये कह रहे हैं कि कुछ ओढ़ने के लिए चाहिए।’ राजा ने कहा कि जाओ और उन्हें एक-एक कम्बल बांट दो। चापलूसों ने रूपये लिए और आपस में बांट कर रवाना हो गए। तीसरे दिन फिर गीदड़ चिल्ला रहे थे। चिल्लाना तो उनका गुणधर्म स्वभाव है। राजा ने पूछा, ‘अब किस वस्तु की आवश्यकता हैं इन्हें ? चाटुकारों ने कहा, ‘ये कह रहे हैं कि हमें रहने के लिए घर उपलब्ध कराए जाए।’ राजा ने कहा, ‘इनके रहने की व्यवस्था कर दो। चापलूसों ने फिर वैसा ही किया।’
शाम को देखा तो सियार फिर चिल्ला रहे है। राजा ने सुना और पूछा-अब क्या मांग हैं इनकी ? चापलूस बोले अन्नदाता ! अब इनकी सारी जरूरतों की पूर्ति कर दी हैं। अतः ये आपकी कीर्ति का बखान कर हरे है। महाराज ! ये आपके अत्यन्त कृतज्ञ हैं अतः आज से रोज शाम को आपकी जय मनाएंगे।, आपके गुण गाएंगे। राजा चापलूसों की बात सुनकर खुश हो गया। चापलूस तो खुश थे ही क्योंकि उन्हें अच्छी-खासी रकम जो मिल गई थी।
-मुनि तरूणसागर
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