गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

विवेक जरूरी

गधे को गधा सिर्फ इसलिए कहते हैं कि वह लत धारणा में जीता है। यदि तुम भी अपने मित्रों के प्रति, पड़ौसी के प्रति, पत्नी के प्रति गलत धारणा रखते हो तो तुम अपने बारे में सोचो कि तुम क्या हो ?

किसी शैतान को मजाक सूझी। एक गधा जहाँ खड़ा था, उसके दाएं-बाएं दोनों तरफ कुछ दूर पर उसने हरी घास के दो ढेर लगा दिए। गधे ने हरी-हरी घास देखी तो मुख में पानी आ गया। उसने विचार किया कि कौन सी घास खाऊं ? विचार किया, दाएं तरफ की खानी चाहिए। मन ने कहा, क्यों बाएं तरफ की क्यों नहीं ? बाएं तरफ में क्या दोष है ? तो मन ने कहा, ठीक हैं, बाएं तरफ की खानी चाहिए। तभी दूसरा विचार उठा, क्यों दाएं तरफ की क्यो न खाई जाए ? उसमें क्या कमी हैं ?

अब गधा खड़ा हैं, घास पड़ी हैं। विचार कर रहा है कि कौन सी खाऊ ? सुबह से शाम हो गई। घास पड़ी हैं, गधा खड़ा हैं, कौनसी खाऊं ? दाएं तरफ की खाऊं, नहीं-नहीं, बाएं तरफ की खाऊं। पूरी रात निकल गई। घास पड़ी हैं, गधा खड़ा हैं और कहते है कि दो दिन तक गधा भूखा-प्यासा खड़ा रहा, विचार करता रहा और भूख के कारण कमजोरी के कारण गिर पड़ा और मर गया। 

आप सब कहोगे कि कितना मूर्ख गधा था ? अरे खा लेता, किधर की भी लेकिन मैं तुमसे पूछता हूं कि यह किस्सा कहीं तुम्हारा ही किस्सा तो नहीं हैं ? तुम भी तो विचारों में जी रहे हो। तुम विवेक में कहां जीते हों, विवेक से निर्णय कहां करते हो।

-मुनि तरूणसागर

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