धन का दान करने वाले बहुत हैं । धन के बल पर नहर सड़क बन सकती हैं । लोकमानस को उत्कृष्ट नहीं बनाया जा सकता । यह कार्य सत्पुरुषों के भावनापूर्ण समय दान से ही संभव होगा । युग-निर्माण के लिए धन की नहीं, समय की, श्रद्धा की, भावना की, उत्साह की आवश्यकता पड़ेगी । नोटों के बन्डल यहाँ कूड़े-करकट के समान सिद्ध होंगे । समय का दान ही सबसे बड़ा दान है, सच्चा दान है । धनवान लोग अश्रद्धा एवं अनिच्छा रहते हुए भी मान, प्रतिफल, दबाव या अन्य किसी कारण से उपेक्षापूर्वक भी कुछ पैसे दान खाते फेंक सकते हैं, पर समयदान वही कर सकेगा जिसकी उस कार्य में श्रद्धा होगी । इस श्रद्धायुक्त समय-दान में गरीब और अमीर समान रूप से भाग ले सकते हैं । युग-निर्माण के लिए इसी दान की आवश्यकता पड़ेगी और आशा की जाएगी कि अपने परिवार के लोगों में से कोई इस दिशा में कंजूसी न दिखावेगा ।
-वाङ्मय ६६-३-७
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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