बेल पेड़ से लिपट कर ऊँची तो उठ सकती है, पर उसे अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आवश्यक रस भूमि के भीतर से ही प्राप्त करना होगा । पेड़ बेल को सहारा भर दे सकता है, पर उसे जीवित नहीं रख सकता । अमरबेल जैसे अपवाद उदाहरण या नियम नहीं बन सकते ।
व्यक्ति का गौरव या वैभव बाहर बिखरा दीखता है । उसका बड़प्पन आँकने के लिए उसके साधन एवं सहायक आधार-भूत कारण प्रतीत होते हैं । पर वस्तुतः बात ऐसी है नहीं ।
मानवी प्रगति के मूलभूत तत्त्व उसके अन्तराल की गहराई में ही सन्निहित रहते हैं । परिश्रमी, व्यवहारकुशल और मिलनसार प्रकृति के व्यक्ति सम्पत्ति उपार्जन में समर्थ होते हैं । जिनमें इन गुणों का आभाव है, वे पूर्वजों की छोड़ी हुई सम्पदा की रखवाली तक नहीं कर सकते । भीतर का खोखलापन उन्हें बाहर से भी दरिद्र ही बनाये रहता है ।
गरिमाशील व्यक्ति किसी देवी देवता के अनुग्रह से महान नहीं बनते । संयमशीलता, उदारता और सज्जनता से मनुष्य सुदृढ़ बनता है, पर आवश्यक यह भी है कि उस दृढ़ता का उपयोग लोक मंगल के लिए किया जाय । पूँजी का उपयोग सत्प्रयोजनों के निमित्त न किया जाय तो वह भारभूत ही होकर रह जांति है । आत्मशोधन की उपयोगिता तभी है, जब वह चंदन की तरह अपने समीपवर्ती वातावरण में सत्प्रवृत्तियों की सुगंध फैला सके ।
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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Invest your abilities wisely
A creeper can climb high by clinging onto a tall tree, but to maintain its existence, to live, it must depend on the nutrition, life force it gets draws from deep within the earth. A tree can merely support the creeper, but cannot keep it alive. Parasitic flora like Cuscuta (Dodder) cannot be taken as an example, or do not dictate the rule in this particular context.
We can see the expanse of a person’s glory and opulence on the outside. And to gauge this greatness, we use the metrics of his/her means, or his/her associates.
But really, this is not the complete truth.
The essential elements needed for success are actually embedded deep within us. Hardworking, tactful and genuinely amiable people are capable of generating wealth. People who lack these traits are not capable of even maintaining their inherited wealth.
As they lack these vital qualities inside, on the outside they remain impoverished.
Eminent people must earn their place in this world, its not bestowed upon them by the blessing of a God or a Goddess. Austereness, generosity and virtue make a man strong, but it is necessary that this strength of character should be used for the welfare of others.
Assets if they cannot serve altruistic aims become an onerous burden.
Self-analysis is beneficial only when it can diffuse good qualities in the surrounding atmosphere as a sandalwood piece diffuses fragrance anywhere it’s placed.
- Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from - Akhand Jyoti - 1987 - April - Page 1
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