एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पुरूष सामान्य वेशभूषा में जा रहा था। सड़क के किनारे खड़े बालक ने झिझक के साथ कुछ राशि की गुहार की । उस गणमान्य नागरिक ने कहा-‘‘बेटे ! यह तो तुम्हारे पढ़ने-लिखने की उम्र हैं, भीख क्यों माँगते हो ?’’ लड़के ने करूण स्वर में कहा-‘‘मेरी माता बीमार पड़ी हैं। छोटा भाई भूखा है। कल से हम सबके मुँह में अन्न का एक दाना भी नहीं गया। पिता एक वर्ष पूर्व गुजर गए। मैं विवश होकर आपसे कह रहा हूँ।’’ उन सज्जन ने कुछ सिक्के, जिनसे सात दिन की दवा व खाने की व्यवस्था हो जाए, देकर घर का पता पूछा और कहा-‘‘मैं कोई व्यवस्था करता हूँ।’’ वे स्वयं उसके घर पहुँच गएं सब देखा सब सही था। बच्चे की कापी से एक पन्ना फाड़कर कुछ लिखा और कहा-‘‘यह जो डाक्टर आएँ, उन्हें दिखा देना।’’ और चले गए। बच्चा डाक्टर को लकर आया। डाक्टर ने आकर देखा, पढ़ा तो खुशी के मारे आँखों में अश्रु आ गए। बोला-‘‘बहन ! तुम्हारे पास तो इस देश के राजा स्वयं किंग जोसेफ द्वितीय आए थे। उन्होंने लिखा हैं कि तुम्हारे इलाज हेतु श्रेष्ठतम व्यवस्था की जाए और बड़ी धनराशि की व्यवस्था भी की जाए।’’ माँ के मुँह से निकला-‘‘जिस देश का राजा इतना दयालु हैं, वहाँ की जनता को क्या कष्ट हो सकता हैं !’’ किंग जोसेफ द्वितीय सादा वेश में निरन्तर भ्रमण करते थे। कहा जाता हैं, उनके राज्य में कोई दुखी नहीं था।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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