शनिवार, 8 जनवरी 2011

ज्ञान वही जो महानता जगाए।

ज्ञान की उपयोगिता, आवश्यकता और महत्ता कम करके नहीं समझी जानी चाहिए। जिस प्रकार भोजन करते समय आहार के संबंध में यह जाना-परखा जाता हैं कि उसमें उपयोगी, पौष्टिक तत्त्व हैं या नहीं। उसकी प्रकार ज्ञान संपादन करते समय यह कसौटी लगी रहनी चाहिए कि उसमें ऐसे तत्त्व है या नहीं, जो व्यक्तित्व और कृतित्व को ऊध्र्वगामी बना सकने की क्षमता रखते हैं। अंदर से जो श्रेष्ठ हो, उसी को अपनाया जाए राजहंस एक ऐसी प्रवृत्ति हैं जिसमें अपने दृष्टिकोण को परिवर्तित किया जाता हैं नीर-क्षीर विवके का मानस बने। मोती चुगने और कीड़े छोड़ देने की प्रवृत्ति को अपनाने का प्रयास अनवरत रूप से चलता रहे। मनोरंजन के लिए जो पढ़ा, सुना, देखा जाना हैं, उसमें कटौति करके इस स्तर का ज्ञान संपादन करते रहा जाए जो व्यक्ति के अंतराल में समाहित प्रसुप्त महानताओं का जागरण कर सके। गुण, कर्म, स्वभाव में मानवी गरिमा के अनुरूप सतप्रवृत्तियों को उभारने, बढ़ाने, परिपक्व, सुविस्तृत एवं सुदृढ़ बनाने में समर्थ हो सके। 

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