ईसा का अधिकांश समय पापी, दुखियों के साथ बीतता। वे उनसे चर्चा करते, उन्हें सुधारने, उनके कष्ट मिटाने की सेवा-सहायता में लगें रहते। एक दिन धन एवं विद्धानों की मंडली उनके पास आई व कहने लगी कि आप हम वरिष्ठों पर अधिक ध्यान क्यों नही देते। हम जो आप की सहायता करेगें वह आपके ही कम आएगी । ईसा सुनकर बोले- ‘‘रोगी को चिकित्सक की आवश्यकता पड़ती है । सच्चा चिकित्सक वही है, जो रोगीयों की व्यथा समझे, उनकी सहायता करे । मेरा कार्यक्षेत्र यही रोगी-दुखी-पथ भूले लोग हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
1 टिप्पणी:
आपका ब्लॉग अच्छा लगा। जनमानस परिष्कार मंच के लिये हार्दिक शुभकामनायें
एक टिप्पणी भेजें