शनिवार, 7 अगस्त 2010

बच्चे मन के सच्चे

बच्चे मन के सच्चे 
सारी जग के आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो 
भगवान को लगते प्यारे 

खुद रूठे, खुद मन जाये, फिर हमजोली बन जाये 
झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें 
इनकी किसी से बैर नहीं, इनके लिये कोई ग़ैर नहीं 
इनका भोलापन मिलता है, सबको बाँह पसारे 
बच्चे मन के सच्चे ... 

इन्ससान जब तक बच्चा है, तब तक समझ का कच्चा है 
ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े, मन पर झूठ क मैल चढ़े 
क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे, लालच की आदत घेरे 
बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
 बच्चे मन के सच्चे ... 

तन कोमल मन सुन्दर हैं बच्चे बड़ों से बेहतर 
इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं 
भाषा की तक़रार नहीं, मज़हब की दीवार नहीं 
इनकी नज़रों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे 
बच्चे मन के सच्चे ... 

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