गुरुवार, 19 नवंबर 2009

मानव जाति एकात्मा

चीन में उन दिनों कुछ थोड़े शहरों को छोड़ कर शेष स्थानों पर विदेशियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। कभी भूल से कोई विदेशी वहाँ पहुँच जाता तो चीनी मरने-मारने को उतारू हो जाते, उनकी जान संकट में पड़ जाती। 

एक बार स्वामी विवेकानन्द चीन भ्रमण करने गये। उनकी किसी गाँव में भ्रमण की इच्छा हुई। दो जर्मन पर्यटकों की भी इच्छा वहाँ का ग्राम्य जीवन देखने की थी, पर साहस के अभाव में उनकी प्रवेश की हिम्मत नहीं हो रही थी। उन्होनें यह बात स्वामी जी से कही तो स्वामी जी ने कहा-``सारी मनुष्य जाति एक हैं, हमें विश्वास हैं कि यदि हम सच्चे हृदय से वहाँ के लोगों से मिलने चले तो वे लोग हमें मारने की अपेक्षा प्रेम से ही मिलेंगे।´´

वे जर्मन पर्यटकों को लेकर गाँव की ओर चल पड़े। दुभाषिया उनके लिए तैयार नहीं हो रहा था, पर जब स्वामी जी नहीं रूके तो वह भी साथ चला तो गया, पर अन्त तक उसे यही भय बना रहा कि वे लोग उसे मारे नही। 

गाँव वाले विदेशियों को देखकर लाठी लेकर मारने दौड़े। स्वामी विवेकानन्द ने उनकी ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा-``क्या आप लोग अपने भाईयों से प्रेम नहीं करते।´´ दुभाषिया ने यही प्रश्न उनकी भाषा में ग्रामीणों से पूछा। तो वे लोग बेचारे बड़े लज्जित हुए और लाठी फेंककर स्वामी जी के स्वागत-सत्कार में जुट गये। यह देखकरा जर्मन बोले-``सच हैं, यदि आप जैसा निश्छल प्रेम सारे संसार के लोगों में हो जाये, तो धरती पर कहीं भी कष्ट-कलह नहीं रह जाये।´´

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