अंतकाल में महापुरूषों को देह की पीड़ा तो रहती है, पर मन कभी विकल नहीं होता । वे मन से प्रसन्न रहकर कष्ट को सहन करते हैं। अपने सारे भोग काट कर ही जाते है। नरसी महता की पत्नी मरी । लोगों ने आकर देखा-वे कीर्तन कर रह थे। खूब प्रसन्न थे। लोगो ने सोचा वियोग में पागल हो गए हैं, बहुत स्नेह करते थे अपनी पत्नी को, लेकिन वो प्रसन्न-मुक्त हो गई। इस तथ्य को संसारी आदमी नही समझ सकते।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें