नियमित उपासना का काई न कोई उपक्रम बैठा लिया जाए तो उसके बड़े ही चमत्कारी सत्परिणाम सामने आते है। श्री कंदकरि बीरेश लिंगम् ने जिस दिन से दीक्षा संस्कार ग्रहण किया, उसी दिन से निष्ठापूर्वक एक सौ बार गायत्री मंत्र का जप नित्य नियमित रूप से करने का दृढ निश्चय कर लिया। उपासना में श्रद्धा और नियमितता अपनी शक्ति होती है। श्री बीरेश लिंगम् की माँ भूत-प्रेतों का नाम सुनकर ही भयभीत हो जाती थी । उन्ही दिनों उनके यहाँ एक तांत्रिक योगी आता था। जो अपने को प्रेतविद्या का निष्णात मानता और भूत भगाने का आश्वासन देता था। उसकी माता जी को उस तांत्रिक के प्रति गहरी श्रद्धा थी । यह एक प्रकार का अंधविश्वास ही था। बीरेश लिंगम् इस अंध मान्यता को कहाँ स्वीकार करने वाले थे। उनने उस तांत्रिक को घर में आने से मना कर दिया । तांत्रिक क्रोधित होकर उनके उपर आक्रमण करने पर उतारू हो गया और बुरे से बुरा शाप देने लगा।
नियमित रुप से गायत्री उपासना करने वाले पर उसकी धमकी का काई प्रभाव नहीं पड़ा , वरन् `शिकारी खुद शिकार बन गया´ वाली उक्ति ही चरितार्थ होती देखी गई । तांत्रिक बीरेश लिंगम् की गरजना को सुनकर बीमार पड़ गया और दिन-प्रतिदिन दुर्बल होता चला गया । उस महान उपासक के हृदय में करुणा कूट-कूट कर भरी थी, इसलिए उस तांत्रिक को कुछ आर्थिक सहायता प्रदान कर उसे वापस घर भेज दिया । उस दिन से तांत्रिक ने भी उपासना का महत्व समझ लिया और संकल्प किया कि आज से मैं गायत्रीसाधक के साथ कोई ऐसी हरकत नहीं करुँगा, एक साधक की तरह ही रहूँगा।
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