गुरुवार, 16 जुलाई 2009

महापुरुषों के विचार - ८

१- सत्य को कह देना ही मेरा मजाक का तरीका है। संसार मे यह सबसे विचित्र मजाक है। –जार्ज बर्नाड शा
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२- पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है। - अज्ञात
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३- अच्छा ही होगा यदि आप हमेशा सत्य बोलें, सिवाय इसके कि तब जब आप उच्च कोटि के झूठे हों |-– जेरोम के जेरोम

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४- किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा। उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा।- एनन
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५- यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है।- पाल गेटी
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६- विकल्पों की अनुपस्थिति मस्तिष्क को बड़ी राहत देती है | – हेनरी किसिंजर
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७- उसी धर्म का अब उत्थान , जिसका सहयोगी विज्ञान ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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८- धर्म , व्यक्ति एवं समाज , दोनों के लिये आवश्यक है। — डा॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
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९- धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है ।
— डा शंकरदयाल शर्मा
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१०- धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा । — आइन्स्टाइन
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११- जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ । — वेद व्यास
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१२- झूट का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा । - लीमैन बीकर
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१३- ‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती। - महात्मा गांधी

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१४- कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है । –सुदर्शन
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१५- जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
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१६- घमंड करना जाहिलों का काम है। - शेख सादी
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१७- जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है |– कबीर
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१८- गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है | – शेक्सपीयर
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१९- संयम और श्रम मानव के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं । श्रम से भूख तेज होती है और संयम अतिभोग को रोकता है । — रूसो
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२०- नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये ।— रामकृष्ण परमहंस
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२१- महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं । — स्वामी विवेकानन्द
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२२- समाज के हित में अपना हित है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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२३- जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए।- महाभारत
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२४- नेकी कर और दरिया में डाल। -किस्सा हातिमताई
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