शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

आपका अनन्य भक्त।

देवता वरदान बॉंटने धरती पर आए, तो लोगों की अपार भीड़ अपनी-अपनी मनोकानाएं लेकर आ जुटी। किसी ने यष माँगा, किसी ने धन, किसी ने पद तो किसी ने कुछ और। देवता सबकी वांछित मनोकामनाएं पूरी करते चले गए। एक विद्रुप सा व्यक्ति हाथ जोड़े कोने में खड़ा था। देवता ने पास बुलाकर कहा-``तात् ! तुम्हें भी जो कुछ माँगना हो, माँग लो।

उसने कहा-`` मेरी याचना तो छोटी सी है। जिन लोगों ने धन माँगा हैं, उनके पते मुझे बताने की कृपा करें। फिर मैं अपनी मनोकामना स्वयं ही पूरी कर लूँगा।´´

देवता ने आश्चर्य से पूछा-`` आखिर तुम हो कौन ? ´´ उस व्यक्ति ने कहा-`` व्यसन, अनावश्यक धन को विकेंद्रित करने में संलग्न आपका अनन्य भक्त।´´


आप भी हमारे सहयोगी बने।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin