गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

चारित्र

एक सेठ के घर तोता पला था, वह उसे पिंजड़े में नहीं रखता था ।
एक दिन सेठ ने अपने घर के आसपास एक बिल्ली देखी ।
सेठ ने तोते को बताया कि - बिल्ली आए, तो उड़ जाना ।
वह रोजाना उसे याद दिलाता था, तोता भी दिन भर बोलता रहता था – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना
एक दिन सचमुच बिल्ली आ गयी ।
तोता बोलने लगा – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना, पर उड़ा नहीं,
बिल्ली तोते को खा गयी ।

हम भी अच्छी बातें बोलते हैं, पर समय आने पर क्रियान्वित नहीं करते हैं ।
मुनि तरूणसागर

एक दिन ऐसा करके देखें, जीने का नजरिया बदल जाएगा

जीवन को यदि गरिमा से जीना है तो मृत्यु से परिचय होना आवश्यक है। मौत के नाम पर भय न खाएं बल्कि उसके बोध को पकड़ें। एक प्रयोग करें। बात थोड़ी अजीब लगेगी लेकिन किसी दिन सुबह से तय कर लीजिए कि आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, ऐसा सोचना भर है। अपने मन में इस भाव को दृढ़ कर लें कि यदि आज आपका अंतिम दिन हो तो आप क्या करेंगे। 

बस, मन में यह विचार करिए कि कल का सवेरा नहीं देख सकेंगे, तब क्या करना...? इसलिए आज सबके प्रति अतिरिक्त विनम्र हो जाएं। आज लुट जाएं सबके लिए। प्रेम की बारिश कर दें दूसरों पर। विचार करते रहें यह जीवन हमने अचानक पाया था। परमात्मा ने पैदा कर दिया, हम हो गए, इसमें हमारा कुछ भी नहीं था। जैसे जन्म घटा है उसकी मर्जी से, वैसे ही मृत्यु भी घटेगी उसकी मर्जी से। 

अचानक एक दिन वह उठाकर ले जाएगा, हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हमारा सारा खेल इन दोनों के बीच है। सच तो यह है कि हम ही मान रहे हैं कि इस बीच की अवस्था में हम बहुत कुछ कर लेंगे। ध्यान दीजिए जन्म और मृत्यु के बीच जो घट रहा है वह सब भी अचानक उतना ही तय और उतना ही उस परमात्मा के हाथ में है जैसे हमारा पैदा होना और हमारा मर जाना। 

इसलिए आज ऐसा महसूस करें आज आखिरी दिन है। कल रहें न रहें तो क्यों न आज जिएं। प्रेम से जिएं उस परमात्मा की मर्जी से जिएं। हमारे कई संत-महात्मा अपने जीवन के हर दिन को मौत की मस्ती के साथ जीते थे। क्योंकि इन लोगों का मानना था कि जन्म परमपिता परमेश्वर ने दिया है तो समापन भी वे ही करेंगे और उनका यही बोध कि आज का दिन अंतिम हो सकता है, उनको अमर बना गया। इसका एक आसान तरीका है जरा मुस्कुराइए...।

अगर शांति चाहिए तो इससे दोस्ती कीजिए...

यदि आप शांति की तलाश में हैं तो अपनी दोस्ती मौन से भी कर ली जाए। पुरानी कहावत है मौन के वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं। मौन और चुप्पी में फर्क है। चुप्पी बाहर होती है, मौन भीतर घटता है। चुप्पी यानी म्यूटनेस जो एक मजबूरी है। लेकिन मौन यानी साइलेंस जो एक मस्ती है। इन दोनों ही बातों का संबंध शब्दों से है। 

दोनों ही स्थितियों में हम अपने शब्द बचाते हैं लेकिन फर्क यह है कि चुप्पी में बचाए हुए शब्द भीतर ही भीतर खर्च कर दिए जाते हैं। चुप्पी को यूं भी समझा जा सकता है कि पति-पत्नी में खटपट हो तो यह तय हो जाता है कि एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे, लेकिन दूसरे बहुत से माध्यम से बात की जाती है। 

भीतर ही भीतर एक-दूसरे से सवाल खड़े किए जाते हैं और उत्तर भी दे दिए जाते हैं। यह चुप्पी है। इसमें इतने शब्द भीतर उछाल दिए गए कि उन शब्दों ने बेचैनी को जन्म दे दिया, अशांति को पैदा कर दिया। दबाए गए ये शब्द बीमारी बनकर उभरते हैं। इससे तो अच्छा है शब्दों को बाहर निकाल ही दिया जाए। 

मौन यानी भीतर भी बात नहीं करना, थोड़ी देर खुद से भी खामोश हो जाना। मौन से बचाए हुए शब्द समय आने पर पूरे प्रभाव और आकर्षण के साथ व्यक्त होते हैं। आज के व्यावसायिक युग में शब्दों का बड़ा खेल है। आप अपनी बात दूसरों तक कितनी ताकत से पहुंचाते हैं यह सब शब्दों पर टिका है। कुछ लोग तो सही होते हुए भी शब्दों के अभाव, कमजोरी में गलत साबित हो जाते हैं। 

कोई आपको क्यों सुनेगा यदि आपके पास सुनाने लायक प्रभावी शब्द नहीं होंगे। इसलिए यदि शब्द प्रभावी बनाना है तो जीवन में मौन घटित करना होगा। समझदारी से चुप्पी से बचते हुए मौन को साधें। चुप्पी चेहरे का रौब है और मौन मन की मुस्कान। जीवन में मौन उतारने का एक और तरीका है जरा मुस्कराइए...

2 मिनिट का ऐसा योग और गर्मी देगी छोड़

आज पूरी दुनिया में योग की धूम मची हुई है। वह समय चला गया जब योग को हिन्दू धर्म की उपासना पद्धति मानकर अन्य धर्मों के लोग इससे मुंह फेर लेते थे। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। विज्ञान ने भी अब योग को एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति मानकर इसकी प्रामाणिकता पर मुहर लगा दी है। गर्मियों की लगभग शुरुआत हो चुकी है। बारिश और ठंड की बजाय गर्मियों का सीजन सभी के लिये ज्यादा कठिन और पीड़ादायक होता 
है। 

योग में एक ऐसी क्रिया है, जिसे करने मात्र 5 से 7 मिनिट लगते हैं तथा इसके करने से गर्मी में भारी राहत मिलती है। यह क्रिया है-शीतली प्राणायाम। आइये देखें इस योगिक क्रिया को कैसे किया जाता है-

शीतली प्राणायाम: पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों से ज्ञान मुद्रा लगाएं। होठों को गोलाकार करते हुए जीभ को पाइप की आकृति में गोल बनाएं। अब धीरे-धीरे गहरा लंबा सांस जीभ से खींचें। इसके बाद जीभ अंदर करके मुंह बंद करें और सांस को कुछ देर यथाशक्ति रोकें। फिर दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। इस क्रिया को 20 से 25 बार करें। प्रतिदिन शीतली प्राणायाम करने से अधिक गर्मीं के कारण पैदा होने वाली बीमारियां और समस्याएं नहीं होती। लू लगना, एसिडिटी, आंखों और त्वचा के रोगों में तत्काल आराम मिलता है।

विवेक जरूरी

गधे को गधा सिर्फ इसलिए कहते हैं कि वह लत धारणा में जीता है। यदि तुम भी अपने मित्रों के प्रति, पड़ौसी के प्रति, पत्नी के प्रति गलत धारणा रखते हो तो तुम अपने बारे में सोचो कि तुम क्या हो ?

किसी शैतान को मजाक सूझी। एक गधा जहाँ खड़ा था, उसके दाएं-बाएं दोनों तरफ कुछ दूर पर उसने हरी घास के दो ढेर लगा दिए। गधे ने हरी-हरी घास देखी तो मुख में पानी आ गया। उसने विचार किया कि कौन सी घास खाऊं ? विचार किया, दाएं तरफ की खानी चाहिए। मन ने कहा, क्यों बाएं तरफ की क्यों नहीं ? बाएं तरफ में क्या दोष है ? तो मन ने कहा, ठीक हैं, बाएं तरफ की खानी चाहिए। तभी दूसरा विचार उठा, क्यों दाएं तरफ की क्यो न खाई जाए ? उसमें क्या कमी हैं ?

अब गधा खड़ा हैं, घास पड़ी हैं। विचार कर रहा है कि कौन सी खाऊ ? सुबह से शाम हो गई। घास पड़ी हैं, गधा खड़ा हैं, कौनसी खाऊं ? दाएं तरफ की खाऊं, नहीं-नहीं, बाएं तरफ की खाऊं। पूरी रात निकल गई। घास पड़ी हैं, गधा खड़ा हैं और कहते है कि दो दिन तक गधा भूखा-प्यासा खड़ा रहा, विचार करता रहा और भूख के कारण कमजोरी के कारण गिर पड़ा और मर गया। 

आप सब कहोगे कि कितना मूर्ख गधा था ? अरे खा लेता, किधर की भी लेकिन मैं तुमसे पूछता हूं कि यह किस्सा कहीं तुम्हारा ही किस्सा तो नहीं हैं ? तुम भी तो विचारों में जी रहे हो। तुम विवेक में कहां जीते हों, विवेक से निर्णय कहां करते हो।

-मुनि तरूणसागर

संघर्ष

जीवन में आने वाली परीक्षा की घडि़यां त्रासदी या जीत हो सकती हैं, यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि हम उनसे कैसे निपटते है। प्रयास के बिना विजय नहीं मिलती हैं। 

जीव विज्ञान का एक शिक्षक अपने छात्रों को पढ़ा रहा था कि कैसे इल्ली तितली में परिणत हो जाती है। उसने छात्रों से कहा कि अगले दो घण्टों में तितली, कोये (ककून) से बाहर निकलने के लिए जद्धोजहद करेगी, लेकिन इसमें किसी को तितली की मदद नहीं करनी चाहिए। उसके बाद शिक्षक चला गया। तितली कोये (ककून) से बाहर निकलने के लिए जद्धोजहद कर रही थी। एक छात्र को तितली पर दया आ गई और शिक्षक की सलाह के विपरीत उसने तितली की मदद करने का फैसला किया, ताकि उसे और ज्यादा संघर्ष न करना पड़े। लेकिन, थोड़ी देर बाद ही तितली मर गई। जब शिक्षक लौटा, तो उसे बताया गया कि क्या हुआ था। उसने छात्रों समझाया कि यह प्रकृति का नियम हैं कि कोये (ककून) से बाहर निकलने के लिए किया गया संघर्ष वास्तव में तितली के पंखों को विकसित और मजबूत बनाने में मदद करता हैं। तितली की सहायता कर लड़के ने तितली को उसके संघर्ष से वंचित कर दिया था और तितली मर गई। 

ठीक इसी सिद्धान्त को अपने जीवन में लागू करके देखें। जीवन में संघर्ष के बिना हासिल की गई कोई भी चीज मूल्यवान नहीं हैं। एक माता-पिता के रूप में हम उन्हें ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते हैं, क्योंकि हम उन्हें संघर्ष नहीं करने देते हैं, जिससे वे मजबूत नहीं बन पाते। 

-शिव खेड़ा

कौन जगाए

एक व्यक्ति को लगा कि वह मर गया हैं। वह जिन्दा था लेकिन मन में एक पागलपन सवार हो गया कि वह मर गया है। जब उसका कोई दोस्त रास्ते में मिल जाता, तब वह पूछ बैठता, ‘‘मित्र तुम्हें पता चला ? दोस्त पूछता ‘‘किस बात का ? वह कहता हैं कि मैं मर गया हूं।’’ शुरू-शुरू में तो दोस्तों ने उसे मजाक माना, फिर लगा कि मामला गम्भीर हैं। परिवार के लोग उसे एक मनोवैज्ञानिक के पास ले गए। मनोवैज्ञानिक ने पागल से पूछा, ‘‘अगर हम किसी मुर्दा व्यक्ति को चीरा लगाएं तो खून निकलेगा या नहीं ?’’ उसने कहा, ‘‘ डाक्टर साहब खून तो जिन्दा आदमी को चीरा लगाने पर ही निकलता हैं। ’’ मनोवैज्ञानिक अपनी इस तरकीब पर बड़ा खुश हुआ। उसको लगा कि अब समस्या का समाधान निश्चित हो जाएगा। उसने पागल व्यक्ति को पकड़ा और एक दर्पण के सामने खड़ा कर दिया और हाथ में चीरा लगा दिया। चीरा लगाते ही खून का फव्वारा फूट पड़ा। मनोवैज्ञानिक ने पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम मरे हो या जिन्दा। पागल बोला, डाक्टर साहब ! गलतफहमी थी मुझे। अभी तक तो मैं यही मानता था कि मुर्दे में खून नहीं होता, पर आज मालूम पड़ गया कि मुर्दे में भी खून होता हैं।’’

जिसने तय कर लिया कि 4 और 5 दस होते हैं, उसे समझाना कठिन हैं। सोए हुए को जगाना बड़ा आसान हैं, लेकिन जो सो नहीं रहा हैं सिर्फ सोने का बहाना करके लेटा हैं उसे जगाना मुश्किल हैं, बड़ा कठिन हैं। 

-मुनि तरूणसागर

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