सोमवार, 20 जून 2011

अखण्ड ज्योति फरवरी 1987

1. अवरोध क्यों आते हैं ? प्रयास क्यों असफल होते हैं

2. चिन्तन-चेतना में उत्कृष्टता उभरें

3. हम विनाश की कगार पर खड़े है

4. अगणित विपत्तियों का एक ही उद्गम

5. प्रस्तुत समस्याओं का एक ही निराकरण

6. कुविचार अपनाने से ही विपत्तियाँ बढ़ी हैं

7. सर्वनाश का एकमात्र कारण दुर्गति

8. अवरोधों से जूझने की सूझबूझ जगे

9. पुरातन और अर्वाचीन दर्शन आदर्शो का समर्थन करे

10. अन्तरंग को सुधारें, बहिरंग सुविकसित होगा

11. इक्कीसवी सदी विशेषांक-क्रिया पर उत्तरार्ध-विनाश विभीषिकाओं का अन्त होकर रहेगा

12. सहायता के लिए दैवी शक्ति का आह्वान

13. खतरा इतना गम्भीर नहीं ?

14. बढ़ती हुई विभीषिकाओं के हल निकलेंगे

15. भावी परिवर्तन की पृष्ठभूमि

16. प्रतिभाएँ अग्रिम पंक्ति में आएँ

17. नवयुग की चार आधारशिलाएँ

18. प्रचण्ड धर्मानुष्ठान की पुण्य प्रक्रिया

19. धर्मतन्त्र द्वारा आस्था क्षेत्र का परिमार्जन

20. विश्व शान्ति भारत की भूमिका

21. परिवर्तन की अदृश्य किन्तु अदृभुत प्रक्रिया

22. दिव्य सम्भावना सुनिश्चित है

23. गूँज उठी है सभी दिशाएँ-जनजागरण के उद्घोष से-राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प

24. अपनो से अपनी बात

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