सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

गायत्री का तत्त्वदर्शन और भौतिक उपलब्धियाँ

गायत्री-उपासना का सहज स्वरूप है-व्याहृतियों वाली त्रिपदा गायत्री का जप । 'ॐ र्भूभुवः स्वः' यह शीर्ष भाग है, जिसका तात्पर्य है कि आकाश, पाताल और धरातल के रूप में जाने जाने वाले तीनों लोकों में उस दिव्यसत्ता को समाविष्ट अनुभव करना । जिस प्रकार न्यायाधीश और पुलिस अधीक्षक की उपस्थिति में अपराध करने का कोई साहस नहीं करता, उसी प्रकार सर्वदा, सर्वव्यापी, न्यायकारी सत्ता की उपस्थिति अपनी सब ओर सदा-सर्वदा अनुभव करना और किसी भी स्तर की अनीति का आचरण न होने देना । 'ॐ' अर्थात् परमात्मा । उसे विराट् विश्व ब्रह्माण्ड के रूप में व्यापक भी समझा जा सकता है । यदि उसे आत्मासत्ता में समाविष्ट भर देखना हो तो स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर में परमात्म सत्ता की उपस्थिति अनुभव करनी पड़ती है और देखना पड़ता है कि इन तीनों ही क्षेत्रों में कहीं ऐसी मलीनता न जुटने पाए, जिसमें प्रवेश करते हुए परमात्म सत्ता को संकोच हो, साथ ही इन्हें इतना स्वस्थ, निर्मल एवं दिव्यताओं से सुसंपन्न रखा जाए कि जिस प्रकार खिले गुलाब पर भौरे अनायास ही आ जाते हैं, उसी प्रकार तीनों शरीरों में परमात्मा की उपस्थिति दीख पड़े और उनकी सहज सदाशयता की सुगंधि से समीपवर्ती समूचा वातावरण सुगंधित हो उठे । 

गायत्री मंत्र का अर्थ सहज सर्वविदित है- सवितुः-तेजस्वी । वरेण्यं-वरण करना, अपनाना । भर्गो-अनौचित्य को तेजस्विता के आधार पर दूर हटा फेंकना । देवस्य-देवत्व की पक्षधर विभूतियों को-धीमहि अर्थात् धारण करना । अंत में ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि इन विशेषताओं से संपन्न परमेश्वर हम सबकी बुद्घियों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें, सद्बुद्घि का अनुदान प्रदान करे । कहना न होगा कि ऐसी सद्बुद्घि प्राप्त व्यक्ति, जिसकी सद्भावना जीवंत हो, वह अपने दृष्टिकोण में स्वर्ग जैसी भरी-पूरी मनःस्थिति एवं भरी-पूरी परिस्थितियों का रसास्वादन करता है । वह जहाँ भी रहता है, वहाँ अपनी विशिष्टताओं के बलबूते स्वर्गीय वातावरण बना लेता है । 

स्वर्ग-प्राप्ति के अतिरिक्त दैवी अनुकंपा का दूसरा लाभ है-मोक्ष । मोक्ष अर्थात् मुक्ति-कषाय-कल्मषों से मुक्ति, दोष-र्दुगुणों से मुक्ति, भव-बंधनों से मुक्ति । यही भव-बंधन है, जो स्वतंत्र अस्तित्व लेकर जन्मे मनुष्यों को लिप्साओं और कुत्साओं के रूप में अपने बंधनों में बाँधता है । यदि आत्मशोधनपूर्वक इन्हें हटाया जा सके तो समझना चाहिए कि जीवित रहते हुए भी मोक्ष की प्राप्ति हो गई । इसके लिए मरणकाल आने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती । गायत्री की पूजा-उपासना और जीवन-साधना यदि सच्चे अर्थो में की गई हो तो उसकी दोनों आत्कि ऋद्घि- सिद्घियाँ स्वर्ग और मुक्ति के रूप में निरंतर अनुभव में उभरती रहती हैं और उनके रसास्वादन से हर घड़ी-कृत हो चलने का अनुभव होता है । 
गायत्री-उपासना द्वारा अनेक भौतिक सिद्घियों व उपलब्धियों के मिलने का इतिहास पुराणों में वर्णित है । वशिष्ट के आश्रम में विद्यमान नंदिनी रूपी गायत्री ने राजा विश्वामित्र की सहस्त्रों सैनिकों वाली सेना की कुछ ही पलों में भोजन-व्यवस्था बनाकर उन सबको चकित कर दिया था । गौतम मुनि को माता गायत्री ने अक्षय पात्र प्रदान किया था, जिसके माध्यम से उन दिनों की दुर्भिक्ष-पीड़ित जनता को आहार प्राप्त हुआ था । दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराने वाले श्रंगी ऋषि को गायत्री का अनुग्रह ही प्राप्त था, जिसके सहारे चार देवपुत्र उन्हें प्राप्त हुए । ऐसी ही अनेक कथा-गाथाओं से पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है, जिसमें गायत्री-साधना के प्रतिफलों की चमत्कार भरी झलक मिलती है ।
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

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