शनिवार, 11 दिसंबर 2010

वीरमती

भारतीय नारियाँ अपने आदर्श चरित्र, सतीत्व रक्षा और वीरता के लिए संसार भर में प्रसिद्ध रही है। जब भी जरूरत पड़ती है, उन्होनें अपने प्राण भी दिए हैं। वीरागंना वीरमती ऐसा ही एक नाम है। चोदवी सदी में राजा रामदेव अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। देवगिरि उनकी राजधानी थी। दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी का राज्य था। जिसके लिए उसने इतना खून-खराबा किया, चितौड़ पर चढ़ाई की, वह पद्मिनी तो उसे मिल न सकी, मिले मात्र खड़हर एवम जौहर व्रत धारण कर अग्निदेव की शरण ले चुकी क्षत्राणियों की भस्म। क्रूर खिलजी की निगाह देवगिरि पर पड़ी । देवगिरि के राजा ने स्पष्ट कह दिया कि स्वाधीनता  के लिए उसका देश खून बहा देगा। दुःखद बात यह थी कि राजा का सुयोग्य सेनापति मराठा वीर एक अन्य लड़ाई में मारा गया था। उसके जमाता श्रीकृष्णराव को सेनापति नियुक्त किया गया था। वीरमती उस वीर सेनापति की पुत्री थी, जो श्रीकृष्णराव को ब्याही गई थी। श्रीकृष्णराव वीर था, पर वीरमती जानती थी कि वह विश्वासपात्र नहीं है। जब लगा कि यह खिलजी से मिलकर अपने राज्य पर ही हमला करने वाला है। तो पुरूषवेश धारण कर वीरमती पति के पीछे चल पड़ी। उसने जब उसे भेद बताते देखा तो अपने पति के कलेजे में तलवार भोंक दी और दूसरे ही क्षण स्वंय को भी मार दिया । राज्य एक देशद्रोही के हमले से बच गया, पर वीरमती वीरगति को प्राप्त हुई। 

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