सोमवार, 16 अगस्त 2010

ईश्वरचंद विद्यासागर

ईश्वरचंद विद्यासागर एक दिन अपने मित्र के साथ अनिवार्य कार्य से जा रहे थे। रास्तें में हैजे से पीड़ित एक दीन-हीन व्यक्ति मुर्छित अवस्था में पड़ा मिला। विद्यासागर उनकी सफाई करके पास के अस्पताल मे पहुँचाने का उपक्रम करने लगे। साथी मित्र ने कहा-‘‘हम लोग आवश्यक काम से जा रहे है, यह काम तो काई भी कर लेगा, हम लोग अपना कार्य क्यों छोडें ? 

विद्यासागर ने कहा-‘‘मानवता की सेवा से बढकर और कोई काम बड़ा हो ही नहीं सकता। निष्ठुर का कोई कार्य भला नहीं कहा जा सकता ।’’

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