बुधवार, 17 जून 2009

धन लक्ष्मी और सोभाग्य लक्ष्मी

धन लक्ष्मी वहीं विराजती हैं, जहाँ दुरुपयोग न होता हो, जहाँ सदैव पुरुषार्थ में निरत रहने वाले व्यक्ति बसते हो।

बलि अपने समय के धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में सतयुग विराजता था।

सौभाग्य लक्ष्मी बहुत समय तो उस क्षेत्र में रहीं, पर पीछे अनमनी होकर किसी अन्य लोक को चली गई ।

इन्द्र को असमंजस हुआ और इस स्थान-परिवर्तन का कारण पूछ ही बैठे। 

सौभाग्य लक्ष्मी ने कहा, मैं उद्योगलक्ष्मी से भिन्न हूँ। मात्र पराक्रमियों के यहाँ ही उसकी तरह नहीं रहती। मेरे निवास में चार आधार अपेक्षति होते है।- १- परिश्रम में रस, २- दूरदर्शी निर्धारण ,३- धैर्य और साहस तथा ४- उदार सहकार।

बलि के राज्य में जब तक ये चारों आधार बने रहे, तब तक वहां रहने में मुझे प्रसन्नता थी। पर अब, जब सुसंपन्नों द्वारा उन गुणों की उपेक्षा होने लगी तो मेरे लिए अन्यत्र चले जाने के अतिरिक्त और कोई चारा न था।

                                                आप भी युग निर्माण योजना में सहभागी बने।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin