उपार्जन एक बात है और सदुपयोग दूसरी। शारीरिक और मानसिक क्षमता के आधार पर किसी भी प्रकार उपार्जन किया जा सकता है, किन्तु उसका सदुपयोग दूरदर्शी विवेक के बिना नीति निष्ठा के बिना बन नहीं पड़ता। उस स्तर की क्षमता का होना भी सुसंतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है।
पदार्थ विज्ञान प्रदत्त संसाधनों, अनेकानेक उपकरण, उपलब्धियों का अगर यदि सदुपयोग बन पड़े तो निःसंदेह मनुष्य इतना सुखी, संतुष्ट, प्रसन्न एवं समुन्नत बन सकता है, जितना की स्वर्गलोकवासियों के सम्बन्ध में सोचते और वैसा सुयोग प्राप्त करने के लिए हम ललचाते रहते हैं।
जीवन देवता की साधना-आराधना (२)- १.१०"
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