मिट्टी के खिलौने जितनी आसानी से मिल जाते है, उतनी आसानी से सोना नही मिलता है। पापों की ओर आसानी से मन चला जाता है, किंतु पुण्य कर्मों की ओर प्रवृत करनें मे काफी परिश्रम करना पड़ता है। पानी की धारा नीचे पथ पर कितनी तेजी से अग्रसर होती है, किन्त अगर ऊँचे स्थान चढ़ाना हो तो पंप आदि लगाने का प्रयास किया जाता है।
बुरे विचार, तामसी संकल्प, ऐसे पदार्थ हैं जो बड़ा मनोरंजन करते हुये मन मे धंस जाते हैं ओर साथ ही अपनी मारक शक्ति को भी ले आते है। स्वार्थमयी नीच भावनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करके जाना गया है कि वे काले रंग छुरियों के समान तीक्ष्ण एवं तेजाब की तरह दाहक होती है। उन्हें जहाँ थोड़ा सा भी स्थान मिला कि अपने सदृश्य और भी बहुत सी सामग्री खींच लेती है। विचारों में भी पृथ्वी आदि तत्वों की भांति खिचनें की शक्ति होती है। तदनुसार अपनी भावना को पुष्ट करने वाले उसी जाति के विचार उड़-उड़ कर वही एकत्रित होने लगतें है।
यही बात भले विचारों के सम्बन्ध में भी है। वे भी अपने सजातियों को अपने साथ इकठ्ठे करकें बहुकुटुम्बी बनने में पीछे नही रहतें । जिन्होने बहुत समय तक बुरे विचारों को अपने मन मे स्थान दिया है। उन्हें चिन्ता, भय और निराशा का शिकार होना पड़ेगा।
अखण्ड ज्योति अप्रेल 1980 पृष्ठ 10
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