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2. ईश्वर पर सदा भरोसा रखिए, वह निन्यानवे द्वार बंद कर देता हैं, पर भाग्य का एक द्वार फिर भी खुला रखता हैं।
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3. गुरू विद्यालय भी हैं और मन्दिर भी। हम गुरू की इज्जत भी करें और उनसे नसीहत भी लें।
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4. दुर्योधन नहीं, युधिष्ठिर बनें। दुर्योधन को किसी में भलाई नहीं दिखती, युधिष्ठिर को किसी में बुराई नहीं दिखती।
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5. घर में कोई बुढ़ा हैं तो उसे भार की बजाय भाग्य मानिए। बूढ़ा पेड़ फल नहीं देता, पर छाया तो देता ही हैं।
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6. हमेशा प्रेम की भाषा बोलिए। इसे बहरे भी सुन सकते हैं और गूंगे भी समझ सकते हैं।
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7. जब हम औरों के काम आते हैं तो हम ईश्वर के काफी करीब होते हैं।
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8. लाखों की कीमत चुकाकर भी जिसे बरकरार रखा जाना चाहिए, वह हैं - मन की शान्ति।
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9. आत्मशक्ति को मजबूत कीजिए ! जिसका आत्मविश्वास मजबूत हैं वह सौ बार हारकर भी नहीं हारता।
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10. जहाँ हिम्मत समाप्त होती हें, वहीं हार की शुरूआत होती हैं। आप धीरज मत खोइए, अपना कदम फिर से उठाइए .......।
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11. आप जीवन में इतनी ऊँचाइयाँ अवश्य छू लें कि लोग आपके माता-पिता से पूंछे कि आपने ऐसे क्या पुण्य किए जो ऐसी अच्छी सन्तान हुई।
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12. खाली बैठना बहुत अच्छा लगता हैं, पर उसका परिणाम कभी अच्छा नहीं होता।
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13. तुम उतने ही ऊपर उठ सकोगे, जितेन ऊँचे तुम्हारे विचार हैं।
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14. स्वर्ग भले ही आसमान में हो, पर उसका सुकून माँ के चरणों में ही हैं।
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15. ज्ञान पाने के लिए बचपन, सुख भोगने के लिए जवानी, शान्ति और आनन्द से जीने के लिए बुढ़ापा।
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16. इतनी लालसा मत पालिए, जो मिला हैं, पहले उसका आनन्द लीजिए।
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17. मित्र की भूल अकेले में कहिए, पर प्रशंसा सबके सामने कीजिए।
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18. सुबह जल्दी जगने की आदत डालिए, ताकि आप केवल डूबता हुआ सूरज ही नहीं, भाग्य के उगते हुए सूरज को भी देंख सकें।
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19. यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो धैर्य को अपना धर्म बना लें।
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20. अच्छी पत्नी की तरह अच्छे मित्र का चयन कीजिए। गलत पत्नी आपको दुःखी करेगी, पर गलत मित्र आपके घर-परिवार की सुख-शान्ति ही चैपट कर देगा।
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21. औरों की भलाई कीजिए। भलाई का हर कदम हमें स्वर्ग की ओर बढ़ाता हैं।
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22. प्रशंसा और प्रसन्नता ऐसे इत्र हैं जिन्हें आप जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगन्ध आपके लौटकर मिलेगी।
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23. कड़क लफ्जों में हल्की बात कहने की बजाय नरम लफ्जों में ठोस बात कहिए।
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24. नशा धीमा जहर हैं। जहर तो पीने वाले का नुकसान करता हैं, पर नशा तो पूरे परिवार का नाश करता हैं।
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25. जब भी लगे कि तुम चिन्ता और तनाव से भरे हुए हों, तो अपने बचपन को याद कर लो और किसी किलकारी भरते हुए बच्चे की की तरह मुस्करा लो।
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26. पत्नी गुस्से में कहे- तुम जानवर हो। आप मुस्कुराकर कहिए - तू मेरी जान हैं, मैं तेरा वर हूँ। यह हैं तरीका, गुस्से को मिटाने का।
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27. बीते कल की चर्चा मत कीजिए और आने वाले कल की चिन्ता। सुखी जीवन का राज हैं, आज की सोचिए, आज को सँवारिए, आज को सार्थक कीजिए।
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28. स्वयं पर अनुशासन कीजिए, तभी आप आने वाले कल पर शासन कर सकेंगे।
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29. डैडी की डाँट-डपट पड़ौसी के दिखावटी प्यार से ज्यादा अच्छी होती हैं।
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30. ज्ञान धन से ज्यादा महान् हैं, धन की हमें रक्षा करनी पड़ती हैं, जबकि ज्ञान हमारी रक्षा करता हैं।
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31. लिए हुए नियम और दिये हुए वचन को मरकर भी निभाने की कोशिश कीजिए।
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-संत प्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी, ललितप्रभ जी
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