1) ज्ञानी उसे कहते है, जो एक निराले ही संसार में रहता है। वहा उसे अखण्ड आनन्द, शान्ति और प्रसन्नता की सतत् अनुभूति होती रहती है। वह स्वतन्त्र होकर कर्म करता रहता हैं। हम लोग प्रतिक्रियाओं से अलग नहीं रह पाते, लेकिन वह उनसे परे चलता हैं, क्योंकि उसे आत्मज्ञान प्राप्त हो गया है। हम वासनाओं के दास हैं, वह उनसे मुक्त हैं। यदि हम भी उसके समान बनना चाहते है तो हमें अपने स्व का विस्तार कर, अहंता, वासना, तृष्णा के भवबंधनो से पार चलना सीखना होगा।
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2) ज्ञानी वह हैं जो वर्तमान को ठीक से पढ सके और परिस्थिति के अनुसार चल सके।
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3) शान्त तथा पवित्र आत्मा में क्लेश, भय, दुःख, शंका का स्पर्श कैसे हो सकता है।
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4) शालीनता से तीनो लोको को जीता जा सकता हैं, इसमें सन्देह नहीं है।
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5) शुभ कार्यो के लिये हर दिन शुभ और अशुभ कार्यो के लिये हर दिन अशुभ है।
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6) शुभ कार्यो को कल के लिये कभी मत टालिये क्योंकि कल कभी नहीं आता है।
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7) शुभ कार्य कभी कल पर नहीं छोडना चाहिये, तथा अशुभ कभी आज नहीं करना चाहिये।
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8) शुभ विचार, शुभ भावना और शुभ कार्य मनुष्य को सुन्दर बना देते है।
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9) शुभ चिन्तन का अभ्यास बनावे।
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10) शून्य और पूर्ण दोनो एक ही अर्थ रखते है।
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11) समय बर्बाद मत करो क्योंकि जीवन उससे ही बना है।
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12) सृष्टि उस उत्साही की हैं, जो शान्त रहता है।
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13) सृष्टि नहीं दृष्टि बदलें।
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14) सृजनात्मक विचारो में नवरचना करने की अद्भुत शक्ति होती हैं।
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15) सृजनात्मक चिन्तन सुख-शान्ति का आधार।
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16) स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर है।
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17) स्त्री परपुरुष का और पुरुष परस्त्री का स्पर्श न करे तो उनके तेज, शक्ति की वृद्धि होंगी।
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18) स्त्री, पुत्र और परिवार के साथ व्यवहार का आदर्श बतलाते हुए श्रीमद्भागवत में कहा है - यद् वदन्ति यदिच्छन्ति चानुमोदेत निर्ममः अपना हठ अधिक न रखें, नही तो बडा दुःख होगा। यह चाहना सर्वथा गलत है। मन हमारा रहे और शरीर दूसरों का काम करे। ऐसा कभी नही हो सकता, क्योंकि सबके मन पृथक-पृथक हैं । सबके मन के संस्कार अलग-अलग है।
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19) संयम जीवन की ऊर्जा के बिखराव एवं विनाश को रोकता हैं। अनुशासन इसे अपने लक्ष्य की ओर नियोजित करता हैं। दोनो का संगम जीवन को उर्ध्वगामी दिशा देकर आत्मसम्मान को प्रत्यक्ष रुप से बढाता है।
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20) संयम अतियों से उबरने एवं मध्यम में ठहरने का नाम है।
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21) संयम और परिश्रम इन्सान के दो सर्वोत्तम चिकित्सक है।
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22) संयम, संतुलन और संतुष्टि मनुष्य को महान् बनाते है।
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23) संकट, सुख और कल्याण के अग्रदूत होते है।
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24) संकल्प एक विकल्पहीन स्थिति है।
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