‘‘मैं अपना काम ठीक-ठीक करूंगा और निश्चय ही भगवान उसका पूरा फल मुझे देंगे।’’ यह दूसरे ने कहा।
‘‘मैं अपना काम ठीक करूंगा। फल के बारे में सोचना मेरा काम नहीं।’’ यह तीसरे ने कहा।
‘‘मैं काम-काज और फल, दोनों के झमेले में नहीं पड़ता, जो होता हैं सब ठीक है, जो होगा सब ठीक हैं।’’ यह चैथे ने कहा।
आकाश सब की सुन रहा था।
उसने कहा-‘‘पहला गृहस्थ हैं,
दूसरा भक्त हैं,
तीसरा ज्ञानी हैं,
पर चैथा परमहंस हैं या अकर्मण्य,
यह में नहीं कह सकता।’’
‘समाज संगठन’ श्री माहेश्वरी समाज इन्दोर के मुख पत्र से साभार।
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