एक घर के द्वार पर तीन देवदूत पहुचे- धन, यश और प्रेम।
मालकिन ने उन्हें अन्दर आने के लिए कहा।
एक देवदूत बोला- हम तुझ पर प्रसन्न हैं, पर तुम हम तीनों मे से किसी एक को बुला सकती हो, शेष दो वापस लौट जायेंगे।
उसने घर वालों से पूछा। पति ने कहा - धन को बुला लो, दिन-रात धन के पीछे ही तो भाग रहे हैं, तभी बेटे ने कहा - माँ, यश को बुला लो। धन तो खूब हैं, अब यश की जरूरत हैं। दोनो की बातें सुन बहु ने कहा - मेरा कहना मानो तो प्रेम को बुला लो। घर में प्रेम होगा तो सब कुछ आ जायेगा।
न जाने सासू माँ को क्या सूझा, उसने कहा- जो प्रेम हैं वे पधार जाये।
प्रेम के आते ही धन और यश भी चले आये।
आश्चर्य से मालकिन ने पूछा- आपने तो कहा था.........।
देवदूत बोला- अगर तुम धन या यश को बुलाते तो बाकी वाले लौट जाते, पर न जाने तुम्हे यह किसने सही सलाह दी, क्योंकि जहा प्रेम होता हैं, वहा धन और यश तो अपने आप आ जाया करते हैं।
मालकिन ने उन्हें अन्दर आने के लिए कहा।
एक देवदूत बोला- हम तुझ पर प्रसन्न हैं, पर तुम हम तीनों मे से किसी एक को बुला सकती हो, शेष दो वापस लौट जायेंगे।
उसने घर वालों से पूछा। पति ने कहा - धन को बुला लो, दिन-रात धन के पीछे ही तो भाग रहे हैं, तभी बेटे ने कहा - माँ, यश को बुला लो। धन तो खूब हैं, अब यश की जरूरत हैं। दोनो की बातें सुन बहु ने कहा - मेरा कहना मानो तो प्रेम को बुला लो। घर में प्रेम होगा तो सब कुछ आ जायेगा।
न जाने सासू माँ को क्या सूझा, उसने कहा- जो प्रेम हैं वे पधार जाये।
प्रेम के आते ही धन और यश भी चले आये।
आश्चर्य से मालकिन ने पूछा- आपने तो कहा था.........।
देवदूत बोला- अगर तुम धन या यश को बुलाते तो बाकी वाले लौट जाते, पर न जाने तुम्हे यह किसने सही सलाह दी, क्योंकि जहा प्रेम होता हैं, वहा धन और यश तो अपने आप आ जाया करते हैं।
1 टिप्पणी:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सभी को एक दूसरे के सहयोग, प्रेम, सौहार्द, सहायता की आवश्यकता कभी भी पड़ सकती है। प्रेम वह अनमोल वस्तु है, जो मानव को परिपूर्णता और संतोष प्रदान करती है। प्रेम, ममत्व, श्रद्धा, सहानुभूति, परोपकार आदि मानवीय मूल्य भीतर के खोखलेपन को खत्म कर देते है । डॉ. राधाकृष्णन का कहना था 'मेरे विचार से मनुष्य की समस्त दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त करने वाली अमोघ वस्तु 'प्रेम' परमात्मा की सबसे बड़ी देन है।'
जब हमारे मन में प्रेम होगा, तो हमारे व्यक्तित्व में निखार आएगा। प्रेम से हमारे दोष दूर हो जाते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि प्रेम तो इतना पवित्र है, जितना स्वयं भगवान। प्रेम हमारे जीवन की त्रुटियों को निखार देता है। मुझे आश्चर्य है कि अगर हमारे पास एक दूसरे को प्यार देने का समय नहीं है, तो घृणा करने के लिए भी समय नहीं मिलना चाहिए । बाइबल में 'लव' (प्रेम) को ईश्वर कहा गया है। बाइबल के अनुसार ईश्वर का प्यार ईश्वर के लोगो से प्रेम करने में निहित है। यह प्रेम का ही भाव था कि ईसा मसीह ने ईश्वर से अपने विरोधियों को क्षमा करने की प्रार्थना की।
हमारे जीवन में प्रेम अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हमारे हृदय में प्रेम नहीं होगा, तब उस पर स्वार्थ और हिंसा का राज्य हो जाएगा और समाज छिन्न-भिन्न होने लगेगा । परिवार टूटने लगेंगे, धर्म और नैतिकता की बातें बेमानी हो जाएंगी और हम स्वयं को नष्ट करने लगेंगे। जब तक स्वार्थ, सुख और इच्छाओं का राज्य है, प्रेम रूपी पुष्प नहीं खिल सकता। प्रेम ही हमारी समस्त समस्याओं का हल है। जब प्रेम अपनी जड़ें मजबूत कर लेगा तो धन, ऐश्वर्य और सफलता स्वत: ही आने को मजबूर हो जाएंगे। परिवार, समाज, देश और यह विश्व, सभी को प्रेम की आवश्यकता है।
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